रतलाम

चारित्र का दूसरा नाम संयम और दीक्षा ही है: आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वर महाराज

रतलाम। ज्ञान उसी का सफल है जिसके मन में चारित्र धर्म की स्थापना हो गई है। ज्ञान प्राप्ती के बाद भी जिसके दिल में चारित्र की भावना न होती हो तो वह अज्ञानी ही होता है। चारित्र का दूसरा नाम संयम और दीक्षा ही है।

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Oct 27, 2023
patrika news

यह बात आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वर महाराज ने शुक्रवार को सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में आयोजित विशेष प्रवचनमाला में कही। आचार्यश्री ने कहा कि हम किसी भी शुभ कार्य या आयोजन में लाखों रुपए खर्च करते है, अपनों को बुलाते है लेकिन कभी किसी जरूरतमंद को नहीं बुलाते है। हमारे मन में यह भावना होना चाहिए कि जिसे जरूरत है, हम उसका भी भला कर सके। यदि प्रभु को देखकर भी दीक्षा का भाव मन में आ जाए तो वह प्रभु दीक्षा कहलाती है।

आलोचना का भी पश्चाताप करना चाहिए


आचार्यश्री ने पश्चाताप दीक्षा का वर्णन करते हुए कहा कि यदि आप किसी की आलोचना करते हो तो उसका भी पश्चाताप करना चाहिए। यदि हमें अपनी गलती के बाद पश्चाताप न हो तो वह अपराध कहलाता है। कोशिश यह होना चाहिए कि किसी की आलोचना न करे। यदि हमे प्रेम नहीं है, पश्चाताप नहीं है, प्रमोद नहीं है तो इन दीक्षा का जीवन में कोई महत्व नहीं होता है। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेव केशरीमल जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी की ओर से आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।

समस्या का हिस्सा बनने वाले अधार्मिक- आचार्य प्रवरश्री विजयराज महाराज ने कहा कि शांत क्रांति संघ सकारात्मक सोच का धनी
रतलाम। धर्म, समाधि देता है। समाधि हमेशा समाधान से प्राप्त होती है। समाधान का हिस्सा बनने वाले बड़े धार्मिक होते है। समस्या का हिस्सा बनने वाले अधार्मिक है। अधार्मिक लोग समस्या ही समस्या खडी करते है, जिससे समाधान नहीं मिलता। समाधान, सकारात्मक सोच से ही होता है। नकारात्मकता से संघ के संबंध टूटते है और सकारात्मकता से जुड़ते है। सकारात्मकता होगी, तो संघ को आगे बढाते रहेंगे। यह बात श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ का 27वें वार्षिक अधिवेशन से पूर्व आचार्य प्रवरश्री विजयराज महाराज ने छोटू भाई की बगीची में प्रवचन के दौरान कही।

Published on:
27 Oct 2023 11:36 pm
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