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#Ratlam चैत्र नवरात्र: मां की इस टेकरी पर केवल चैत्र में होते गरबारास

रतलाम। शारदीय नवरात्र में गरबारास जहां शहर के अधिकांश क्षेत्रों में होते हंै, लेकिन शहर 19 किमी दूर ग्राम नगरा की सागोदी माता मंदिर में केवल चैत्र नवरात्र के दौरान टेकरी पर गरबारास करने गांव से युवतियां और बालिकाएं पहुंचती है। शहर मध्य गढक़ालिका के दरबार में साल में दो बार नवरात्र के दौरान गरबारास होतें है। चैत्र नवरात्र के नौ दिन नन्ही बालिकाएं गरबारास करती है।

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चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शक्तिपीठों पर पहुंंचकर मातारानी के दर्शन वंदन कर पूजन आरती की। कालिका माता मंदिर में पूरे दिन भक्तों का आना लगा रहा। माता के आकर्षक शृंगार के दर्शन कर महिला-पुरुष परिक्रमा कर नाम जाप करते नजर आए। शाम को सात बजे से नन्ही बालिकाओं ने मंदिर पहुंचकर गरबारास किया। नौ बजे तक गरबारास के बाद आरती की बड़ी संख्या में भक्तों ने शामिल होकर धर्मलाभ लिया।

सप्तमी पर निकलेगी चुनरी यात्रा


शहर के माणकचौक स्थित महालक्ष्मी मंदिर पर नित्य हवन चल रहा है। जिसमें यजमान शामिल होकर आहुतियां प्रदान कर रहे हैं। सुबह-शाम आरती के बाद प्रसादी का वितरण किया जा रहा है। शहर के पैलेस रोड स्थित मां पद्मावति से गढख़ंखाई तक पैदल चुनरी यात्रा की तैयारी भी जोर-शोर से चल रही है। 15 अप्रेल सप्तमी पर निकलने वाली चुनरी यात्रा के लिए भक्तों को आमंत्रित किया जा रहा है। शहर स 39 किमी तक निकलने वाली चुनरी यात्रा की शुरुआत शाम 6 बजे की जाएगी।

मां पद्मावति के रणजीत विलास पैलेस से होते थे दर्शन


शहर के महलवाड़ा के मुख्य द्वार पर मां पद्मावति के भव्य मंदिर है, प्राचीन मंदिर के अंदर मातारानी की विशालकाय प्रतिमा विराजमान है। समीप ही मां चामुण्डा भी भक्तों को दर्शन देकर मनोकामना पूर्ण करती है। ऐसी किवंदति है कि मंदिर के सामने रणजीत विलास पैलेस के झरोके से मातारानी के नित्य दर्शन रतलाम राजवंश का परिवार करता था।
वर्तमान में सात पीढिय़ों से पूजा करते आ रहे शर्मा परिवार की शकुंतलाबाई ने बताया कि रात्रि आठ बजे आरती की जाकर प्रसादी का वितरण होता है। दोनों समय आरती के बाद दीपक बत्ती की जाती है। प्राचीन भव्य मंदिर है। मंदिर परिसर में अम्बामाता की मनमोहक प्रतिमा भी विराजमान है। इसे नवरात्र के दौरान लाया गया था, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि यहां लाकर स्थापित करने के बाद यह प्रतिमा यहां से हटी तक नहीं। इसके बाद से इसे मंदिर में ही स्थापित कर हर साल दूसरी प्रतिमा नवरात्र में लाई जाती है।