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Chhath Puja Muhurat : छठ पूजा पर भद्रा का साया, इस मुहूर्त में करें पूजन

Chhath Puja muhurat : दिवाली के पांच दिवसीय त्योहार के समापन के साथ ही अब लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई है। रतलाम में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय छठ पूजा का आयोजन करते है। इस बार इस पूजा के दौरान भद्रा का साया रहेगा। इसलिए विशेष मुहूर्त में पूजन करना बेहतर रहेगा।

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Chhath Puja muhurat

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रतलाम। Chhath Puja Muhurat : दिवाली के पांच दिवसीय त्योहार के समापन के साथ ही अब लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई है। रतलाम में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय छठ पूजा का आयोजन करते है। इस बार इस पूजा के दौरान भद्रा का साया रहेगा। इसलिए विशेष मुहूर्त में पूजन करना बेहतर रहेगा। यह बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेंद्र रावल ने कही। वे भक्तों को छठ पूजा के मुहूर्त के बारे में बता रहे थे।

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रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेंद्र रावल ने बताया कि दिवाली के समापन के साथ ही लोक आस्था के महापर्व डाला छठ की तैयारियां शुरू हो गई हैं। गली से लेकर विभिन्न मोहल्लो में छठ के पारंपरिक मधुर गीत केलवा जे फरेले घवद से उहे पर सुगा मंडराय, कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी चलकत जाय.व हमहूं अरघिया देबई हे छठी मइया आदि गूंजने लगे हैं। 31 अक्टूबर की चतुर्थी से यह पर्व की शुरुआत होगी।

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घर से घाट तक आस्था का उत्साह
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक चार दिन तक घर से कालिका माता मंदिर के झाली तालाब के घाट तक आस्था और उत्साह रहेगा। रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेंद्र रावल ने कहा कि इस बार छठ महापर्व 31 अक्टूबर यानी गुरुवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। पहली नवंबर को खरना और दो नवंबर को सूर्य षष्ठी का मुख्य पर्व होगा। इस दिन व्रतीजन डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। पर्व का समापन तीन नवंबर यानी रविवार को उदित होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा। इसी दिन पारण किया जाएगा। नहाय-खाय महापर्व की शुरुआत 31 अक्तूबर यानी गुरुवार को नहाय-खाय के साथ होगी।

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गुरुवार को रहेगा भद्रा का योग
रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेंद्र रावल के अनुसार छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी, 31 अक्तूबर शनिवार से शुरू होगा। समापन तीन नवंबर रविवार को होगा। गुरुवार को शाम 4.45 के बाद भद्रा का योग है।

छठ महापर्व की तिथि 31 अक्तूबर, गुरुवार नहाय-खाय
1 नवंबर, शुक्रवार खरना
2 नवंबर, शनिवार अस्त होते सूर्य को अर्घ्य
3 नवंबर, रविवार उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण

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इस तरह मनता है यह पर्व

इस दिन घर की साफ-सफाई करके व्रतीजन स्नान करते हैं। खाने में अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू का सेवन होता है। परंपरा के अनुसार इस दिन से व्रत संपन्न होने तक व्रतीजन बिस्तर पर नहीं सोते हैं। खरना से प्रसाद बनाने के लिए घरों में गेंहू, चावल को शुद्धता से पिसवाने का काम शुरू हो गया है। खरना महापर्व का दूसरा चरण नहाय-खाय होगा। यह पहली नवंबर यानी शुक्रवार को है। इस दिन व्रतीजन शाम को भोजन करते हैं। भोजन में गुड़ खीर खाने की परंपरा है। अस्त होते सूर्य को अर्घ्य खरना के बाद तीसरा मुख्य चरण शनिवार यानी दो नवंबर को सूर्य पष्ठी है। इस दिन परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर प्रसाद बनाते हैं। इसके साथ ही छठ मइया के पारंपरिक गीतों से घर-आंगन गूंजेगा।

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अंतिम चरण तीन नवंबर

प्रसाद में मुख्य रूप से ठेकुआ, गन्ना, बड़ा नीवू, चावल के लड्डू, फल आदि शामिल होगा। शाम को सूप में प्रसाद सजाकार व्रती अपने परिवार के साथ झाली तालाब व हनुमान ताल पर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगे। उगते सूर्य को अर्घ्य महापर्व का अंतिम चरण तीन नवंबर यानी रविवार को है। इस दिन व्रतीजन भोर में परिवार के साथ डाला लेकर तालाब किनारे पर पहुंचेंगे। घाट पर स्थापित वेदी पर विधिविधान से पूजन-अर्चन के बाद जल में खडे़ होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देंगे। छठव्रती भगवान भाष्कर को प्रसाद अर्पित करने के बाद पारण करेंगे।

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