
Father's Day 2019 hindi shayri
रतलाम। Father's Day 2019: आज 16 जून को विश्व पिता दिवस पूरी दुनिया मना रही है। इसकी शुरुआत 1910 में सोनोरा लुईस स्मार्ट डाड ने की थी। उस समय मदर्स डे मनाया जाता था। तब से सोनोरा ने फादर्स डे मनाने की शुरुआत की। भारत के जाने-माने शायरों ने अनेक शायरी इस पर की है। यहां तक की उज्जैन के अंतर्राष्ट्रीय कवि ओम व्यास ओम ने तो पूरी कविता ही पिता को समर्पित की है। रतलाम में ये दिन उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। सोशल मीडिया के अनेक गु्रप में इसके बारे में काफी लिखा जा रहा है। पिता को घना पेड़ बताया जा रहा है।
फेसबुक हो या वाट्सएप या फिर ट्वीट, हर कोई अपने पिता को आज के दिन अलग-अलग अंदाज में याद कर रहा है। शहर में सुबह से फुल से लेकर बुके खरीदने वालों के यहां पर भीड़ है। इसके अलावा बेटियों ने तो विशेष तैयारी करके स्वयं कार्ड बनाकर पिता को दिए है। आज भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच भी है, तो अधिकांश घरों मे रविवार होने से पार्टी जैसा माहोल है।
उर्दू के शायरों ने खूब शायरी की
हर साल जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे (Father's Day) मनाया जाता है। फादर्स डे की शुरुआत 1910 में सोनोरा लुईस स्मार्ट डॉड (Sonora Louise Smart Dodd) नाम की 16 वर्षीय लड़की ने की थी। सोनोरा का लालन-पालन उनके पिता ने किया था। सोनोरा ने जब मदर्स डे के बारे में सुना तो उसने फादर्स डे (Father's Day) मनाने के बारे में सोचा। इस तह सोनोरा के प्रयासों से ही फादर्स डे की शुरुआत हुई। इस साल फादर्स डे (Father's Day 2019) 16 जून को है। फादर्स डे के मौके पर अब कई तरह के आयोजन होते हैं और गिफ्ट्स की भी भरमार है। फादर्स डे (Father's Day 2019) पर उर्दू के शायरों ने खूब शायरी की है।
ये सोच के मैं बाप की खिदमत में लगा हूं
इस पेड़ का साया मेरे बच्चों को मिलेगा
मुनव्वर राना
बेटियां बाप की आखों में छिपे ख्बाव को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख्बाव को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
इफ्तिखार आरिफ
मुझ को थकने नहीं देता ये जरूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
मेराज फैजाबादी
उन के होने से बख्त होते हैं
बाप घर के दरख्त होते हैं
अज्ञात
सुबह सवेरे नंगे पांव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
हम्माद नियाजी
मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूं मैं
रईस फरोग
घर लौट के रोएंगे मां बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
कैसर-उल जाफरी
बच्चे मेरी उंगली थामे धीरे-धीरे चलते थे
फिर वो दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
खालिद महमूद
मुझ को छांव में रखा और खुद भी वो जलता रहा
मैं ने देखा इक फरिश्ता बाप की परछाईं में
अज्ञात
Published on:
16 Jun 2019 10:04 am
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