
history and development of railway transport in india news
रतलाम। भारत सोने की चिडि़या था, ये बात तो सभी सुने हुए हैं, लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि देश की रेलवे में एक ट्रैक एेसा भी है, जिसको बनाने के लिए अंगे्रजों ने एक बडे़ रियासत के राजा से कर्ज लिया था। कर्ज मिला तो, लेकिन इस शर्त के साथ की, रेल लाइन का नाम रियासात के नाम होगा। अंगे्रजों ने इस शर्त को मान लिाया था। हम बात कर रहे है भारतीय रेलवे में पश्चिम रेलवे के अंतर्गत आने वाले रतलाम रेल मंडल के ट्रैक याने पटरियों की। जी हां, इंदौर सेक्शन में कुछ पटरियों को तत्कालीन समय में होलकर द्वितीय रियासत के समय अंगे्रजों ने राजा से कर्ज लेकर डाला था। तब हाथियों से इंजन को खींचा गया था।
इस बात पर आज आप भरोसा भी न करें, लेकिन ये सच है कि अंगे्रज जब भारत पर शासन करते थे तब राजाओं से कर्ज लेते थे। ये बात रेलवे के इतिहास में भी दर्ज है कि रतलाम रेल मंडल के अंतर्गत आने वाले इंदौर होलकर राजवंश के तत्कालीन महाराला तुकोजीराव होलकर द्वितीय ने अंगे्रजों को एक करोड़ रुपए का कर्ज उस समय पटरी डालने के लिए दिया था। रेलवे की तकनीकी भाषा में इसको ट्रैक डालना कहते है।
तीन सेक्शन को जोड़ा था तब
पश्चिम रेलवे व रतलाम रेल मंडल के इतिहास में ये दर्ज है कि इंदौर के करीब के तीन अलग-अलग सेक्शन को जोडऩे के लिए व रेल लाइन बिछाने के लिए रुपए की जरुरत पड़ी थी। तब एक करोड़ रुपए का कर्ज रियासत ने इंदौर के विकास को देखते हुए 4.5 प्रतिशत वर्षिक ब्याज पर दिया था।
पहला राज परिवार था जो अंगे्रजों को कर्ज देते थे
तत्कालीन समय में इंदौर रियासत पहला राज परिवार था, जो अंगे्रजों को न सिर्फ कर्ज दे रहे थे, बल्कि इससे रेल लाइन बिछाई थी। मंडल के रेल अधिकारियों के अनुसार 1869 में तुकोजीराव होलकर द्वितीय ने एक करोड़ रुपए का कर्ज दिया था। इसके बाद 1870 में 79 किमी लंबी सबसे पहले रेल लाइन इंदौर-खंडवा के बीच डाली गई थी। रेलवे अधिकारी बताते है कि ये हैरानी की बात है कि राज्य के हित के लिए न सिर्फ कर्ज दिया गया, बल्कि स्वयं के राज्य की जमीन भी नि:शुल्क उपलब्ध कराई गई। 25 मई 1870 को शिमला में इसके लिए तत्कालीन वायसराय व गर्वनर जनरल इन कौसिंल ने अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे।
इंदौर-अजमेर ट्रैक भी डाला
असल में तुकोजीराव होलकर 1844-86 के समय में खंडवा से अजमेर ? तक रेल लाइन डालने के कार्य की योजना बनी थी इस योजना व रेल लाइन को हेालकर राज्य रेलवे कहा जाने लगा था। तब रेल लाइन की लंबाई 117.53 किमी की थी। इसमे तत्कालीन समय में इंदौर-खंडवा, इंदौर-रतलाम-अजमेर व इंदौर-देवास-उज्जैन होलकर रेल लाइन कहा जाता था।
हाथी खींचते थे इंजन को
उपलब्ध पुराने दस्तावेज में ये दर्ज है कि उस समय इतने संसाधन नहीं थे कि रेलवे के भारी सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाए। एेसे में इंजन को हाथियों द्वारा खींचकर ट्रैक तक लाया जाता था। इंदौर से उज्जैन व अजमेर तक फैली इस रेलवे लाइन को राजपूताना-मालवा रेल लाइन भी कहा जाता था।
- आरएन सुनकर, मंडल रेल प्रबंधक, रतलाम रेल मंडल
Published on:
27 Apr 2018 08:01 am
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