त्रिवेणी मेले में इन दिनों करीब 8 से 10 प्रकार के झूले आए हुए है। इन झूला को चलाने वाले से लेकर इनके मालिक की जिंदगी भी बंजारे के समान होती है। कभी रतलाम तो कभी मंदसौर, कभी शाजापुर तो कभी उज्जैन के मेले में ही आधी से अधिक जिंदगी कट जाती है। करीब दो वर्ष के कोरोना ने इनके कारोबार को पूरी तरह से प्रभावित तो किया, लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां मालिक से लेकर झूलों को चलाने वाले सभी ने स्ययं को वैक्सीन लगवाई है।
कई दिन तक परिवार से रहते दूर
झूला संचालक राजेश भाई बताते है कि उनके पिता यही काम करते थे व अब वे करीब 30 वर्ष से झूला संचालन कर रहे है। कर्मचारियों को वैक्सीन लगवाया है। वैसे तो मौसम बेहतर हो तो परिवार पल जाए इतनी कमाई हो जाती है, लेकिन कोरोना के दौरान सब कुछ बंद रहा। अब फिर सब शुरू हुआ तो फिर से कोरोना बढने का डर सता रहा है। कारोबार के चलते कई – कई दिन परिवार से दूर रहते है। बारिश के समय भी श्रावन माह के लगने वाले मेलों में झूले लेकर जाते है। जब पिता नहीं रहे तो उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए, क्योंकि वे शाजापुर जिले के है व उस समय जब पिता नहीं रहे तब वे उदयपुर के मेले में थे। तब मोबाइल नहीं थे, तो उनको काफी समय बाद पिता के नहीं रहने के बारे में पता चला।
झूला संचालक राजेश भाई बताते है कि उनके पिता यही काम करते थे व अब वे करीब 30 वर्ष से झूला संचालन कर रहे है। कर्मचारियों को वैक्सीन लगवाया है। वैसे तो मौसम बेहतर हो तो परिवार पल जाए इतनी कमाई हो जाती है, लेकिन कोरोना के दौरान सब कुछ बंद रहा। अब फिर सब शुरू हुआ तो फिर से कोरोना बढने का डर सता रहा है। कारोबार के चलते कई – कई दिन परिवार से दूर रहते है। बारिश के समय भी श्रावन माह के लगने वाले मेलों में झूले लेकर जाते है। जब पिता नहीं रहे तो उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए, क्योंकि वे शाजापुर जिले के है व उस समय जब पिता नहीं रहे तब वे उदयपुर के मेले में थे। तब मोबाइल नहीं थे, तो उनको काफी समय बाद पिता के नहीं रहने के बारे में पता चला।
महंगाई से परेशान
झूला संचालक मनोहर भाई ने बताया कि पहले हाथ से खींचकर झूला चलता था, फिर डीजल की बारी आई। अब तो बिजली से चलने वाले झूले आ गए। ऐसे में बेहताशा बढ़ रही महंगाई में झूला संचालन कठीन काम हो गया है। फिर भी उनके साथ आठ कर्मचारियों की टीम है, इसलिए इस काम को जारी रखे हुए है। कई बार ऐसा होता है कि शुरू के तीन से पांच दिन तक कमाई ही नहीं होती। ऐसे में चावल खाकर गुजारा कर लेते है। मनोहर के अनुसार शासन को झूला के लिए भूमि कम दाम पर देना चाहिए।
झूला संचालक मनोहर भाई ने बताया कि पहले हाथ से खींचकर झूला चलता था, फिर डीजल की बारी आई। अब तो बिजली से चलने वाले झूले आ गए। ऐसे में बेहताशा बढ़ रही महंगाई में झूला संचालन कठीन काम हो गया है। फिर भी उनके साथ आठ कर्मचारियों की टीम है, इसलिए इस काम को जारी रखे हुए है। कई बार ऐसा होता है कि शुरू के तीन से पांच दिन तक कमाई ही नहीं होती। ऐसे में चावल खाकर गुजारा कर लेते है। मनोहर के अनुसार शासन को झूला के लिए भूमि कम दाम पर देना चाहिए।