रतलाम। सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में शनिवार को तपोवन स्थापक युग प्रधान आचार्यश्री चंद्रशेखर विजय महाराज की 12वीं पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा हुई। इसके बाद आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वर महाराज की निश्रा में चार भाषा हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती और संस्कृत में प्रवचन हुए। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।
आचार्यश्री ने तपोवन चंद्रशेखर विजय महाराज की पुण्यतिथि के प्रसंग पर आयोजित गुणानुवाद सभा में गुरुदेव के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह जब चलते थे तो उनकी चाल शेर के समान थी और जब कुछ बोलते थे तब शेर की दहा? की तरह आवाज निकलती थी। उनके आशीष वचनों को सुनने के लिए हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं पहुंचते थे।
इनका रहा सहयोग
मुनिराजश्री ज्ञानबोधि विजय महाराज, मुनिराज ज्ञानरूचि विजय महाराज, मुनिराज जिनागम विजय महाराज की ओर से अन्य भाषाओं में गुणानुवाद किया। श्रीदेवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेव केशरीमल जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढी के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।
अभिमान का त्याग हीं सबसे बड़ा त्याग
रतलाम। आचार्यश्री विजयराज महाराज ने छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन ने कहा कि वक्त का कोई भरोसा नहीं है, वह कब किस करवट बैठता है, इसका अंदाजा किसी को नहीं रहता, इसलिए अभिमान नहीं करना चाहिए। संसार में अहंकार धिक्कार है और विनम्रता संस्कार है। सम्यक ज्ञान की प्राप्ति विनम्रता ही कराती है, इसलिए सबका लक्ष्य अहंकारी नहीं विनम्र बनने का होना चाहिए। मनुष्य को थोड़ा ज्ञान होने पर ही सर्वज्ञानी होने का अभिमान हो जाता है। जीवन में यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि दुर्योधन, कंस और रावण जैसे सर्व शक्ति शालियों का अभिमान भी नहीं रहा, तो हमारा कहां से रहेगा?