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पूजन में न जलाएं अगरबत्ती, होता है वंश का नाश, यहां पढ़ें पूजा के नियम

पूजन में न जलाएं अगरबत्ती, होता है वंश का नाश, यहां पढ़ें पूजा के नियम

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puja ke niyam in hindi

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रतलाम। सुबह से लेकर शाम तक मंदिरों से लेकर घरों तक में पूजन में भक्त अगरबत्ती जलाते हैं। किसी को भी इस बात की जानकारी न हैं कि शास्त्रों में बांस को जलाने पर रोक है। जबकि अगरबत्ती को बांस से बनाया जाता है। एेसे में नियम तो ये हैं कि धूप को जलाया जाए, लेकिन इसकी जानकारी के अभाव में हर कोई मंदिर से लेकर घर तक में अगरबत्ती को जलाता हैं, जबकि इसको जलाने से धीरे-धीरे वंश का नाश होता है। ये बात रतलाम के पूर्व राज परिवार के ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने नक्षत्रलोक में भक्तों को कही। ज्योतिषी जोशी ने बताया कि पूजन के अपने नियम है, उनका पालन न करने से लाभ के बजाए समस्या होती है।

ज्योतिषी जोशी ने बताया कि भारतीय संस्कृति में बांस की लकड़ी का जलाना वर्जित माना गया हैं। अग्नि संस्कार एवं अंतिम संस्कार में भी बांस का उपयोग जलाने में नहीं होता है, क्योंकि बांस की लकड़ी जलाने से वंश वृद्धि में अवरोध के साथ पितृ दोष उत्पन्न होता है। शास्त्रों में भी धूपम आग्राहपयामि का उल्लेख आता है। अर्थात है प्रभु आप धूप को ग्रहण कीजिए। धूप में गूगल, कस्तूरी, नागकेसर, छड़ीला, नागरमोथा आदि यज्ञ में उपयोग की औषधियां मिली होती हैं, जो वातावरण को शुद्ध करती है व ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने में सहायक होती है।

धूप जलाने का है विधान


बांस की लकड़ी जलाना शास्त्र में मना है, फिर भी जानकारी के अभाव में हर कोई अगरबत्ती को जलाता है। अगरबत्ती जलाने से पितृदोष लगता है। अगरबत्ती केमिकल से बनाई जाती है, जबकि पूजन में विधान तो धूप जलाने का होता है। पूजन करते समय बहुत से एेसे नियम हैं, जिन पर सामान्य रुप से हमारा ध्यान नहीं जाता है। इन नियम का पालन करने से अधिक लाभ होता है।

पूजन में रखें इन बातों का ध्यान

भगवान गणेश को तुलसी का पत्र छोड़कर कुछ प्रिय हैं। इसी प्रकार भैरव की पूजन में भी तुलसी जी स्वीकार नहीं है। इतना ही नहीं, शिव परिवार में किसी की भी पूजन की जाए, तुलसी वर्जित ही है। इसी प्रकार माघ माह में कुंद का पुष्प महादेव को अर्पित करने का विधान है, लेकिन शेष समय इस फूल को चढ़ाने की अनुमती नहीं है। रविवार को तुलसी की तरह दुर्वा को नहीं तोडऩा चाहिए। इतना ही नहीं, केतकी का फूल महादेव जी को नहीं चढ़ाया जाता है। जबकि महादेव जी के प्रिय मित्र भगवान विष्णु जी को केतकी पुष्प कार्तिक माह में चढ़ाने से अधिक लाभ होता है।

भूलकर भी न करें इनका आह्वान

पूजन में हर देवी-देवता का आह्वान होता है, लेकिन भूलकर भी शानिग्राम की का न तो आह्वान होता है न विसर्जन। इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। भगवान की जो मूर्ति घर या व्यापार में स्थापित की गई है, उनका प्रतिदिन आह्वान या विसर्जन नहीं किस जाता है। इसके अलावा तुलसी जी को दोपहर के बाद ग्रहण नहीं करना चाहिए। पूजन के दौरान कुछ लोग हठ से नियम का पालन करते है। फिर कोई भी आए, वे पूजन का त्याग नहीं करते, जबकि नियम है कि पूजन के दौरान गुरुदेव, स्वयं से ज्योष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आए तो पहले उनको उठकर प्रणाम किया जाए। फिर उनकी आज्ञा लेकर शेष पूजन करना चाहिए।

ये है आह्वान व विसर्जन के नियम

किसी भी पूजन में आह्वान व विसर्जन के तय नियम है। मिट्टी की मूर्ति मात्र का आह्वान व विसर्जन होता है। विसर्जन में भी नियम है कि शास्त्रीयविधि से गंगा नदी या श्रेष्ठ जल में विसर्जित किया जाए। पूजन में कई प्रकार की सामग्री का उपयोग होता है। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कमल के पुष्प को पांच रात तक, बिल्वपत्र को दस रात तक व तुलसी जी को ग्यारह रात तक शुद्ध करके पूजन में उपयोग किया जा सकता है। इससे अधिक पुराने होने पर पूजन में उपयोग न किया जाए।

दूध मात्र से होते सर्व कार्य

ज्योतिषी जोशी ने बताया कि पंचामृत में यदि किसी कारण से अन्य प्रकार की सामग्री उपलब्ध न हो सके तो दूध मात्र से भगवान को स्नान कराने से भी लाभ होता है। इसके अलावा भगवान शालिग्राम व विष्णुप्रिया लक्ष्मी को पूजन में चांवल नहीं चढ़ाएं जाते हैं। इसके अतिरिक्त भगवान को पिघला हुआ घी, पतला चंदन से पूजन नहीं होता हैै।

भूलकर भी न हो दीपक से दीपक को जलाना

ज्योतिषी जोशी ने बताया कि पूजन में इस बात का ध्यान रखा जाए कि दीपक से दीपक को कभी न जलाया जाए। एेसा करने से व्यक्ति गरीब व धन रहित होता है। दक्षिण दिशा में दीपक को नहीं रखना चाहिए। दीपक से धूप को भी न जलाया जाए। पूजन में गंदे वस्त्र, नशा करके कभी न बैठना चाहिए। मूर्ति को अंगूठे से न रगड़ा जाता है। पीपल को दोपहर बाद प्रणाम न होता है। श्रावण मास, चैत्र की शुक्ल व पंचमी के साथ-साथ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को लक्ष्मी प्राप्ती के किए गए उपाय अधिक धन देते है। लक्ष्मी प्राप्ती के लिए कृष्णपक्ष, रिक्त तिथि के साथ-साथ श्रवण नक्षत्र में पूजन नहीं होता है।