
68 शाखा, 1500 स्वयं सेवक, किया संगम
रतलाम. शहर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित 68 शाखाओं के करीब 1500 स्वयं सेवकों ने रविवार को शहर के नेहरू स्टेडियम में संगम का आयोजन किया। शहर की सभी शाखाओं के संगम का आयोजन वर्ष में एक बार होता है।
आयोजन के दौरान हर शाखा प्रमुख ने अपनी - अपनी शाखा के साथ टोली को बैठाया। इस दौरान वर्ष 2025 में संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर होने वाले विभिन्न आयोजन के बारे में भी चर्चा की गई। आयोजन में रतलाम नगर संघचालक दिनेश पटेल, रतलाम विभाग संघचालक तेजराम मांगरोदा मंच पर उपस्थित रहे।
संघ को किसी पहचान की जरुरत नहीं
संगम आयोजन के दौरान रतलाम विभाग संघचालक मांगरोदा ने कहा कि संघ ने अपनी पहचान पूरे विश्व में सेवा, त्याग, तपस्या से बनाई है। संघ व स्वयं सेवक को देश ही नहीं, विश्व में कही भी पहचान देने की जरुरत नहीं होती। इसकी एक बड़ी वजह स्वयंसेवक के संस्कार है। जहां संघ की शाखा लगती है, वहां पर समाज सभ्य के साथ - साथ भयमुक्त रहता है। संगम आयोजन के दौरान जिस तरह संघ की शाखा में विभिन्न तरह की गतिविधियां होती है, उसी तरह से आयोजन शुरू में हुए। गणवेश में उपस्थित स्वयं सेवकों को देखने के लिए बड़ी संख्या में आमजन भी आ गए। अंत में बोद्धिक को सुना गया।
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं:
प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को "प्रभात शाखा" कहते है।
सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को "सायं शाखा" कहते है।
रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को "रात्रि शाखा" कहते है।
मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "मिलन" कहते है।
संघ-मण्डली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "संघ-मण्डली" कहते है।
पूरे भारत में अनुमानित रूप से 55,000 से ज्यादा शाखा लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर "भारतीय स्वयंसेवक संघ" तो कहीं "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के माध्यम से चलता है।
शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता हैं।
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं: प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को "प्रभात शाखा" कहते है। सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को "सायं शाखा" कहते है। रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को "रात्रि शाखा" कहते है। मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "मिलन" कहते है। संघ-मण्डली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "संघ-मण्डली" कहते है। पूरे भारत में अनुमानित रूप से 55000 से ज्यादा शाखा लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर "भारतीय स्वयंसेवक संघ" तो कहीं "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के माध्यम से चलता है। शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है। जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता हैं।
Updated on:
07 Mar 2022 06:08 pm
Published on:
07 Mar 2022 05:50 pm
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