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MP assembly elections श्रवण कुमारों से भरा रतलाम, सास-ससुर की सेवा में भी जुट गए लोग…

एमपी का रतलाम अचानक श्रवण कुमारों का शहर बन गया है। इतना ही नहीं, लोग अपने सास-ससुर की सेवा में भी जुट गए हैं। दरअसल चुनावों में ड्यूटी से बचने के लिए सरकारी कर्मचारियों को अपने ये रिश्ते याद आ गए हैं। चुनावी ड्यूटी निरस्त करवाने वालों की संख्या 100 के आसपास पहुंच चुकी है। आवेदन में कर्मचारी अलग-अलग कारण बता रहे हैं, कुछ कैंसर या गंभीर बीमारी के भी शिकार हैं। कुछ लोग अपने परिजनों की सेवा के लिए चुनाव कार्य से मुक्त होना चाहते हैं।

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एमपी का रतलाम अचानक श्रवण कुमारों का शहर बन गया

एमपी का रतलाम अचानक श्रवण कुमारों का शहर बन गया है। इतना ही नहीं, लोग अपने सास-ससुर की सेवा में भी जुट गए हैं। दरअसल चुनावों में ड्यूटी से बचने के लिए सरकारी कर्मचारियों को अपने ये रिश्ते याद आ गए हैं। चुनावी ड्यूटी निरस्त करवाने वालों की संख्या 100 के आसपास पहुंच चुकी है। आवेदन में कर्मचारी अलग-अलग कारण बता रहे हैं, कुछ कैंसर या गंभीर बीमारी के भी शिकार हैं। कुछ लोग अपने परिजनों की सेवा के लिए चुनाव कार्य से मुक्त होना चाहते हैं।

आ रहे ऐसे आवेदन
मेरे सास-ससुर बुजुर्ग हैं... उनकी दवा चल रही है... घर में उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं है... मैं ही उनका ख्याल रखती हूं...। मैं बीमार रहता हूं, थोड़ा सा चलते ही सांस की बीमारी हो जाती है..., मेरी पत्नी गर्भवती हैं... घर की सारी जिम्मेदारी मैं ही पूरी करता हूं... मां-बाप बूढ़े हैं उनकी देखभाल मुझे ही करनी पड़ती है... सुबह बच्चों को स्कूल भेजने से लेकर घर का सारा काम मुझे ही करना होता है...। जिला निर्वाचन अधिकारी के पास इन दिनों कुछ ऐसी परेशानियों से भरे प्रार्थना पत्र आ रहे हैं। ऐसे एक-दो या चार-छह नहीं वरन अब तक जिला प्रशासन के पास 100 से अधिक आवेदन पहुंच चुके हैं।

दरअसल, विधानसभा चुनाव में जिला निर्वाचन अधिकारी की ओर से कार्मिकों की ड्यूटी चुनाव में लगाई है। ड्यूटी रद्द करवाने के लिए कर्मचारी कई तरह के कारण बता रहे हैं। खास बात है कि इनमें अधिकतर महिला कर्मचारी सास-ससुर की सेवा करने का हवाला दे रही हैं तो पुरुष कर्मचारी भी पत्नी की तबीयत खराब होने या फिर पत्नी के गर्भवती होने के कारण गिना रहे हैं।

कुछ आवेदन इस तरह भी
जिला प्रशासन की निर्वाचन शाखा में ड्यूटी लगाने और निरस्त करने वालों के पास पहुंचे इन 100 आवेदनों में कुछ ऐसे प्रकरण भी हैं जिन्हें वाजिब कहा जा सकता है। कुछ प्रकरण स्वयं कर्मचारी के कैंसर या हृदयाघात की बीमारी से पीडि़त होने का उल्लेख है। इसके दस्तावेज भी कर्मचारियों ने अपने आवेदन के साथ उपलब्ध करवाए हैं।

ये है आवेदनों की बानगी
केस - 1
एक महिला ने आवेदन दिया। उसमें उन्होंने लिखा कि सास की आयु 70 साल है और वे शुगर की बीमारी से पीडि़त हैं। उनकी सुबह-शाम देखभाल के लिए एक व्यक्ति की जरुरत होती है। नौकरी के साथ उनकी देखभाल भी करनी पड़ती है। पति प्राइवेट जॉब करते हैं और उनका काम पर जाना जरुरी होने से मुझे निर्वाचन कार्य से मुक्त रखा जाए।
केस - 2
एक अन्य आवेदन 55 साल के कर्मचारी ने लगाया कि पत्नी की तबीयत खराब रहती है और बच्चे बाहर पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसे में पत्नी की देखभाल के लिए घर पर कोई नहीं होने से मेरा रहना जरुरी है। चुनाव में दो दिन तक बाहर रहने से बीमार पत्नी को समस्या खड़ी हो सकती है।

इस तरह के प्रार्थना पत्र आ रहे
माता-पिता बुजुर्ग हैं, पत्नी बीमार है
सास-ससुर की दवाइयां चल रही है
पत्नी गर्भवती है
वीपी-शुगर का मरीज हूं
परिवार में शादी है, व्यवस्थाएं मुझे ही संभालनी है
तनाव नहीं ले सकता, डॉक्टर ने मना किया है
बच्चे छोटे हैं, पत्नी अकेले नहीं संभाल सकती
पोस्ट कोविड के लक्षण अभी भी झेल रहा हूं, चक्कर आते हैं

अभी आवेदनों पर विचार नहीं
इस संबंध में रतलाम जिपं सीईओ अमन वैष्णव ने बताया कि ड्यूटी निरस्त करवाने के लिए जो आवेदन मिले हैं उन पर फिलहाल विचार नहीं किया गया है। सभी के आवेदन आने के बाद इन पर विचार करके जिनाइन लोगों की ड्यूटी निरस्त की जाएगी।

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