
बाल दिवस विशेष
रतलाम। कहते है बच्चे मन के सच्चे होते है और इनकी मुस्कान पर दुनिया मेहरबान होती है। आज बाल दिवस है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस पर गुलाब की तरह महकने वाले ऐसे ही बच्चों की उपलब्धियों को पत्रिका अपने पाठकों तक पहुंचा रहा है। इन बच्चों ने खुद को परिश्रम के कठिन दौर में तपाकर हमें सफलता की मुस्कान दी है। इनकी उपलब्धि से आज शहर और जिला देशभर में गौरवांवित है।
राष्ट्रीय तीरंदाजी में सैलाना की नेहा
राष्ट्रीय तीरंदाजी में सैलाना की नेहाराष्ट्रीय तीरंदाजी में सैलाना की नेहाराष्ट्रीय तीरंदाजी में सैलाना की नेहाराष्ट्रीय तीरंदाजी में सैलाना की नेहा राष्टीय तीरंदाजी में सैलाना की नेहा जिले के आदिवासी अंचल सैलाना के ग्राम छायन में रहने वाली नेहा चारेल का चयन राष्ट्रीय तीरंदाजी स्पर्धा के लिए हुआ है। नेहा ने इसके पूर्व हाल ही में राज्य स्तरीय तीरंदाजी स्पर्धा में तीसरा स्थान हासिल किया था। उसके इसी प्रदर्शन को देख उसका चयन अब राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए हुआ है। उक्त स्पर्धा के लिए नेहा सोमवार को जबलपुर पहुंची और वहां से प्रदेश की टीम के साथ जगदलपुर के लिए रवाना हुई। अपने बेहतरीन खेल की बदौलत नेहा का पूर्व में भारतीय खेल प्राधिकरण में भी चयन हो चुका है, जहां वह खेलती थी। वर्तमान में वह अपने गांव में ही अभ्यास कर रही है। नेहा को यह खेल पिता रामचंद्र चारेल ने सिखाया है। वहीं उसके गुरू है, जिनकी सीख से उसने यह मुकाम पाया है।
पहले रामायण अब कुरान लिख रही पलक
जिस उम्र में बच्चे हाथ में ठीक से कलम तक नहीं थाम पाते है। एेसे में शहर के इंद्रलोक नगर में रहने वाली दस वर्षीय पलक अवस्थी ने रामायण लिखने के बाद अब कुरान लिखना शुरू कर दी है। पलक की लिखने की कला भी अलग ही है। वह शब्दों को उल्टा बनाती है। एेसे में उसके सामने बैठने वाले शख्स का वह क्या लिख रही है, वह पढ़ सकता है, लेकिन यदि व उसके पास में बैठकर उसे लिखता देखे तो वह उसे भाषा ही समझ में नहीं आती है। नन्हीं पलक की माने तो वह बचपन से हिंदी के साथ ऊर्दू सिखना चाहती थी। उसके रामायण लिखने के बाद कुरान के प्रति रूचि बढ़ी तो उसने उसे लिखने की ठानी लेकिन उसके पास वह नहीं थी। इस पर उसने अपने एक परिचित को ये बात बताई तो उन्होंने ऑन लाइन कुरान बुलाई, जिसमें ऊर्दू के शब्द हिंदी में ट्रांसलेट है। उसके माध्यम से पलक ने अब इसे लिखना शुरू कर दिया है। इतनी कम उम्र में दो धार्मिक ग्रंथों को लिखना अपने आप में एक उपलब्धि है।
राष्ट्रीय स्पर्धा में चमका अब्दुल
र तलाम शहर के नन्हे तैराक अब्दुल कादिर ने दस वर्ष की उम्र में कई उपलब्धियां हासिल की है। कम उम्र में एक हादसे में दोनों हाथ चले जाने के बाद भी इसने हार नहीं मानी और कुछ कर गुजरने की ठानी। इसके तहत अब्दुल ने तैराकी सीखने की ठानी तो कोच राजा राठौड़ ने उसे तैरना सिखाया। बिना हाथों के अब्दुल हाथ वालों से तेज गति से तेरता है। इतनी कम उम्र में वह चौथी बार नेशनल पैरा ओलंपिक में तैराकी स्पर्धा में बाजी मारकर आया है। अब्दुल ने हालही में उदयपुर में आयोजित स्पर्धा में तीन इवेंट में भाग लिया और दो गोल्ड व एक सिल्वर मेडल जीतकर अपना व शहर का नाम रोशन किया।
Published on:
14 Nov 2017 12:21 pm
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