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कोरोना काल में अधिकमास 2020: पुरुषोत्तम मास के ये नियम-संयम आपको रखेंगे बीमारियों से दूर

locationभोपालPublished: Sep 25, 2020 06:21:25 pm

अधिक मास को भगवान विष्णु का आशीर्वाद…

Adhik mass 2020 rules : It will keep you away from diseases

Adhik mass 2020 rules : It will keep you away from diseases

करीब 6 माह पहले शुरु हुआ कोरोना वायरस का हमला अब तक शांत नहीं हुआ है। ऐसे में जहां मार्च से अब तक कई त्योहार व पर्वों के आने के बावजूद हम उन्हें धूमधाम से नहीं मना सके हैं, वहीं कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में इस साल नवरात्रि या दीपावली का पर्व किस स्थिति में मनेगा कहा नहीं जा सकता। वहीं इस बार श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के साथ ही नवरात्र की शुरुआत नहीं हुई, क्योंकि पितृपक्ष समाप्ति के साथ ही आश्विन अधिकमास लग गया। इस अधिक मास को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।

वहीं इस बार अधिक मास 2020 की शुरुआत शुक्रवार से हुई है। इस दिन की कारक देवी मां लक्ष्मी हैं। इसके साथ ही इस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र भी रहा। ज्योतिष ग्रंथों में इसे जल्दी फल देने वाला नक्षत्र माना जाता है। इसलिए माना जा रहा है कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में अधिक मास शुरू होने के कारण इस महीने में समृद्धि और सुख बढ़ेगा। उत्तराफाल्गुनी ध्रुव यानी स्थिर नक्षत्र है। इसलिए इस नक्षत्र में शुरू होने वाले इस महीने में शुभ काम करने से उनका फल और सुख लंबे समय तक मिलता है। वहीं जानकारों की मानें तो इस नक्षत्र का स्वामी सूर्य होने से अधिक मास में नियम-संयम से रहने पर बीमारियां दूर होंगी।

पंडितों व जानकारों के अनुसार अधिक मास के दौरान नियम और संयम से रहना चाहिए। इस दौरान बुरे कामों से दूर रहकर भगवान के करीब आने का मौका मिलता है। इस पवित्र महीने में भगवान के प्रति समर्पित भावना से की गई भक्ति और त्याग से भगवान प्रसन्न होते हैं। इससे धन, पुत्र, समृद्धि और कई तरह के सुख का आशीर्वाद मिलता है।

अधिकमास में क्या करना उचित
आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।

पुरुषोत्तम मास नाम ऐसे पड़ा
अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया।

अधिकमास का पौराणिक आधार
अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुंकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा।

तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरुष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।

पुरुषोत्तम मास का महत्व…
हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है।

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