
विचार मंथन : प्रतिभाओं को भगवान शंकर का वरदान ऐसे मिलता है
परशुराम को काल कुठार दिया
भगवान शंकर ने परशुराम को काल कुठार थमाया था कि पृथ्वी को अनाचारियों से मुक्त करायें। उन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार अनाचारियों से मुक्त कराया। सहस्रबाहु की अदम्य समझी जाने वाली शक्ति का दमन उसी के द्वारा संभव हुआ था। प्रजापति ने दधीचि की अस्थियां मांगकर इंद्र को वज्रोपम प्रतिभा प्रदान की थी, जिससे वृत्रासुर जैसे अजेय दानव से निपटा जा सका।
अर्जुन को गाण्डीव तो शिवाजी की भवानी तलवार
अर्जुन को गाण्डीव देवताओं से मिला था। क्षत्रपति शिवाजी की भवानी तलवार देवी द्वारा प्रदान की गई बताई जाती है। वस्तुतः यह किन्हीं अस्त्र-शस्त्रों का उल्लेख नहीं है, वरन् उस समर्थता का उल्लेख है, जो लाठियों या ढेलों से भी अनीति को परास्त कर सकती है। गांधी के सत्याग्रह में उसी स्तर के अनुयायियों की आवश्यकता पड़ी थी।
राम-लक्ष्मण को बला-अतिबला विद्या
ऋद्धियों-सिद्धियों द्वारा किसी को न तो बाजीगर बनाया जाता है और न कौतुक दिखाकर मनोरंजन किया जाता है। विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को यज्ञ के बहाने अपने आश्रम में ले गए थे। वहां उन्हें बला-अतिबला विद्या प्रदान की थी। उनके सहारे वे शिव धनुष तोड़ने सीता स्वयंवर जीतने, लंका की असुरता मिटाने और रामराज्य के रूप में सतयुग की वापसी संभव कर दिखाने में समर्थ हुए थे।
हरिश्चंद्र को साहस
विश्वामित्र ने ही अपने एक दूसरे शिष्य हरिश्चंद्र को ऐसा कीर्तिमान स्थापित करने का साहस प्रदान किया था, जिसके आधार पर वे तत्कालीन युगसृजन योजना को सफल बनाने में समर्थ हुए थे साथ ही साथ हरिश्चंद्र के यश को भी उस स्तर तक पहुंचा सके थे, जिसकी सुगंध पर मोहित होकर देवता भी आरती उतारने धरती पर आए।
चंद्रगुप्त को संकल्पबल
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को कोई गड़ा खजाना खोदकर नहीं थमाया था, वरन ऐसा संकल्पबल उपलब्ध कराया था जिसके सहारे वे आक्रमणकारियों का मुंह तोड़ जवाब देकर चक्रवर्ती कहला सके थे। समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी के हौंसले इतने बुलंद किए थे कि वे अजेय समझे जाने वाले शासन को नाकों चने चबवाते रहे। छत्रसाल ने सिद्धपुरुष प्राणनाथ महाप्रभु से ही वह प्राण दीक्षा प्राप्त की थी, जिसके सहारे वह हर दृष्टि से राजर्षि कहला सके।
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Published on:
05 Jun 2019 04:55 pm
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