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विचार मंथन : नारी सदैव नर्मदा नदी के समान निर्मल, पूजनीय है, क्योंकि संसार में नारी ही साक्षात् लक्ष्मी है- भगवती देवी शर्मा

locationभोपालPublished: Mar 07, 2019 05:22:44 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

नारी सदैव नर्मदा नदी के समान निर्मल, पूजनीय है, क्योंकि संसार में नारी ही साक्षात् लक्ष्मी है- भगवती देवी शर्मा

daily thought vichar manthan bhagwati devi sharma

विचार मंथन : नारी सदैव नर्मदा नदी के समान निर्मल, पूजनीय है, क्योंकि संसार में नारी ही साक्षात् लक्ष्मी है- भगवती देवी शर्मा

जैसे नर्मदा नदी का निर्मल जल सदा निर्मल रहता है उसी प्रकार ईश्वर ने नारी को स्वभावतः निर्मल अन्तःकरण प्रदान किया है । परिस्थिति तथा संगति से दोष होने के कारण कभी-कभी उसमें भी विकार पैदा हो जाते हैं पर यदि उन कारणों को बदल दिया जाय तो नारी हृदय पुनः अपनी शाश्वत निर्मलता पर लौट आता है ।

 

रेवेव निर्मला नारी पूजनीया सदा मता ।
यतो हि सैव लोकेऽस्मिन् साक्षात्लक्ष्मी मताबुधैः ॥
अर्थात- नारी सदैव नर्मदा नदी के समान निर्मल है । वह पूजनीय है। क्योंकि संसार में वही साक्षात् लक्ष्मी है ।

 

स्फटिक मणि को रंगीन मकान में रख दिया जाय या उसके निकट कोई रंगीन पदार्थ रख दिया जाय तो वह मणि भी रंगीन छाया के कारण रंगीन ही दिखाई पड़ने लगती है। परन्तु यदि उन कारणों को हटा दिया जाय तो वह शुद्ध निर्मल एवं स्वच्छ रूप में ही दिखाई देती है । इसी प्रकार नारी जब बुरी परिस्थिति में पड़ी होती है तब वह बुरी, दोषयुक्त दिखाई पड़ती है परन्तु जैसे ही उस परिस्थिति का अन्त होता है वैसे ही वह निर्मल एवं निर्दोष हो जाती है ।

 

नारी लक्ष्मी का साक्षात अवतार है। भगवान् मनु का कथन पूर्ण सत्य है कि जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं अर्थात् सुख शान्ति के समस्त उपकरण उपस्थित रहते हैं । सम्मानित एवं सन्तुष्ट नारी अनेक सुविधाओं तथा सुव्यवस्थाओं का केन्द्र बन जाती है । उसके साथ गरीबी में भी अमीरी का आनन्द बरसता है। धन दौलत निर्जीव लक्ष्मी है । किन्तु स्त्री तो लक्ष्मी जी की सजीव प्रतिमा है उसके प्रति समुचित आदर का, सहयोग का एवं सन्तुष्ट रखने का सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए ।

 

नारी में नर की अपेक्षा सहृदयता, दयालुता, उदारता, सेवा, परमार्थ एवं पवित्रता की भावना अत्यधिक है। उसका कार्यक्षेत्र संकुचित करके घर तक ही सीमाबद्ध कर देने के कारण ही संसार में स्वार्थपरता, हिंसा, निष्ठुरता, अनीति एवं विलासिता की बाढ़ आई हुई है। यदि राष्ट्रों का सामाजिक और राजनैतिक नेतृत्व नारी के हाथ में हो तो उसका मातृ हृदय अपने सौंदर्य के कारण सर्वत्र सुख शान्ति की स्थापना कर दे ।
राम हमारे घरों में आये, इसके लिए कौशल्या की जरूरत है । कृष्ण का अवतार देवकी की कोख ही कर सकती है । कर्ण, अर्जुन और भीम के पुनः दर्शन करने हों तो कुंती तैयार करनी पड़ेगी । हनुमान चाहिये तो अंजनी तलाश करनी होगी । अभिमन्यु का निर्माण कोई सुभद्रा ही कर सकती है । शिवाजी की आवश्यकता हो तो जीजाबाई का अस्तित्व पहले होना चाहिये ।

 

यदि इस ओर से आँखें बंद कर ली गई और भारतीय नारी को जिस प्रकार अविद्या और अनुभव हीनता की स्थिति में रहने को विवश किया गया है, उसी तरह आगे भी रखा गया हो आगामी पीढ़ियाँ और भी अधिक मूर्खता उद्दंडता लिए युग आवेगी और हमारे घरों की परिपाटी को नरक बना देंगी । परिवारों से ही समाज बनता है फिर सारा समाज और भी घटिया लोगों से भरा होने के कारण अब से भी अधिक पतनोन्मुखी हो जायेगा ।

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