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21 सदी में नारी जाती को सभी बंधनों से मुक्ति मिलकर रहेगी- भगवती देवी शर्मा

locationभोपालPublished: Jan 23, 2020 05:10:54 pm

Submitted by:

Shyam

नारी को भी नर के समतुल्य बनने और अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देने का अधिकार है- भगवती देवी शर्मा

नारी को भी नर के समतुल्य बनने और अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देने का अधिकार है- भगवती देवी शर्मा

नारी को भी नर के समतुल्य बनने और अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देने का अधिकार है- भगवती देवी शर्मा,नारी को भी नर के समतुल्य बनने और अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देने का अधिकार है- भगवती देवी शर्मा,नारी को भी नर के समतुल्य बनने और अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देने का अधिकार है- भगवती देवी शर्मा

नारी को भी मनुष्य माना जा सके। दोनों के बीच भेदभाव बरती जाने वाली सामन्तवादी अन्धकार युग की मान्यता को उलटकर सतयुगी प्रचलन के साथ जोड़ा जा सके। आज तो लड़की-लड़के के सम्बन्ध में दृष्टिकोण का असाधारण अन्तर है। लड़की के जन्मते ही परिवार का मुंह लटक जाता है और लड़का होने पर बधाई बंटने और नगाड़े बजने लगते हैं। लड़का कुल का दीपक और लड़की पराए घर का कूड़ा समझी जाती है। वरपक्ष दहेज की लम्बी चौड़ी मांगें करते हैं और लड़की के अभिभावक विवशता के आगे सिर झुकाकर लुट जाने के लिए आत्म समर्पण करते हैं। पति के तनिक में अप्रसन्न होने पर उन्हें परित्यक्ता बना दिया जाता और रोते-कल्पते जैसे-तैसे भला-बुरा जीवन जीने की घटनाएं इतनी कम नहीं होती जिनको आजादी दी जा सके।

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दहेज के लिए यातनाएं दिए जाने की कुछ घटनाएं तो अखबारों तक में छप जाती है। पर जो भीतर ही भीतर दबा दी जाती है, उनकी संख्या छपने वाली घटनाओं से अनेक गुनी अधिक है। पतिव्रत पालन के लिए लौह अंकुश रहता है पर पत्नीव्रता का कहीं अता-पता नहीं। विधुर प्रसन्नता पूर्वक विवाह करते है पर विधवाओं को ऐसी छूट कहां? नारियां सती होती है, पर नर वैसा उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते। नारियां घूंघट मार कर रहती है। नाक, कान छिदवाकर सजधज से रहने के लिए उन्हें इसलिए बाधित किया जाता है कि वे अपना रमणी, कामिनी, भोग्या और दासी होने की नियति का स्वेच्छा पूर्वक उत्साह पूर्वक मानस बनाए जा सकें।

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लोक मानस का यह लौह आवरण हटे बिना नारी को नर के समतुल्य बनाने और उन्हें अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देकर प्रगति पथ पर कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहने का अवसर आखिर कैसे मिल सकता है? आवश्यकता इस लौह आवरण के ऊपर लाखों करोड़ों छैनी हथौड़े चलाने की है, ताकि निविड़ बंधनों ने आधी जनसंख्या की मुश्कें कसकर जिस प्रकार डाली हुई है, उनसे छुटकारा पाने के लिए उपयुक्त वातावरण बन सके। अपने मिशन का नारी जागरण अभियान इसी गहराई तक पहुंचने का प्रयत्न कर रहा है। उसका मन विष वृक्ष की जड़ काटने का है। पत्तों पर जमी धूलि पोंछ कर चिन्ह पूजा कर लेने से तो आत्म प्रवंचना और लोक विडम्बना भर बन पड़ती है।

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नारी को भी नर के समतुल्य बनने और अपनी प्रतिभा का परिपूर्ण परिचय देने का अधिकार है- भगवती देवी शर्मा
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