गुरुगोविंद सिंह के पंचप्यारे
स्वाधीनता पाने और अन्याय से मुक्ति के लिए बिरले ही आगे आते है-
गुरु गोविन्दसिंह अब उन पाँचों को बाहर निकाल लाये । विस्मित लोगों को बताया यह तो निष्ठा और सामर्थ्य की परीक्षा थी, वस्तुत: सिर तो बकरों के काटे गये । तभी भीड़ में से हमारा बलिदान लो-हमारा भी बलिदान लो की आवाज आने लगी । गुरु ने हँसकर कहा-“यह पाँच ही तुम पाँच हजार के बराबर है । जिनमें निष्ठा और संघर्ष की शक्ति न हो उन हजारों से निष्ठावान् पाँच अच्छे?” इतिहास जानता है इन्हीं पाँच प्यारो ने सिख संगठन को मजबूत बनाया । जो अवतार प्रकटीकरण के समय सोये नहीं रहते, परिस्थिति और प्रयोजन को पहचान कर इनके काम में लग जाते है, वे ही श्रेय-सौभाग्य के अधिकारी होते हैं, अग्रगामी कहलाते है ।