लोग अलग-अलग कारणों से निंदा रस का पान करते हैं । कुछ सिर्फ अपना समय काटने के लिए किसी की निंदा में लगे रहते हैं तो कुछ खुद को किसी से बेहतर साबित करने के लिए निंदा को अपना नित्य का नियम बना लेते हैं । निंदकों को संतुष्ट करना संभव नहीं है । जिनका स्वभाव है निंदा करना, वे किसी भी परिस्थिति में निंदा प्रवृत्ति का त्याग नहीं कर सकते हैं । इसलिए समझदार इंसान वही है जो उथले लोगों द्वारा की गई विपरीत टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने काम में तल्लीन रहता है । किस-किस के मुंह पर अंकुश लगाया जाए, कितनों का समाधान किया जाए ।
प्रतिवाद में व्यर्थ समय गंवाने से बेहतर है अपने मनोबल को और भी अधिक बढ़ाकर जीवन में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें । ऐसा करने से एक दिन आपकी स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी और आपके निंदकों को सिवाय निराशा के कुछ भी हाथ नहीं लगेगा । संसार में प्रत्येक जीव की रचना ईश्वर ने किसी उद्देश्य से की है। हमें ईश्वर की किसी भी रचना का मखौल उड़ाने का अधिकार नहीं है । इसलिए किसी की निंदा करना साक्षात परमात्मा की निंदा करने के समान है। किसी की आलोचना से आप खुद के अहंकार को कुछ समय के लिए तो संतुष्ट कर सकते हैं किन्तु किसी की काबिलियत, नेकी, अच्छाई और सच्चाई की संपदा को नष्ट नहीं कर सकते । जो सूर्य की तरह प्रखर है, उसके कानों पर न ही निंदा रूपी पिशाच का कोई असर पड़ता, साथ ही उस पर निंदा के कितने ही काले बादल छा जाएं किन्तु उसकी प्रखरता, तेजस्विता और ऊष्णता में कमी नहीं आ सकती ।