
खर्चीली शादियां नरभक्षी पिशाचिनी है, यह कितने ही परिवारों की सुख शान्ति और प्रगति छिन लेती है- आचार्य श्रीराम शर्मा
निर्माण से पूर्व सुधार की सोचें
कुरीतियों की दृष्टि से यों अपना समाज भी अछूता नहीं है, पर अपना देश तो इसके लिए संसार भर में बदनाम है। विवाह योग्य लड़के लड़कियों के उपयुक्त जोड़ों का विवाह कर दिया जाय और सार्वजनिक घोषणा के रूप में उनका पंजीकरण करा देना या घरेलू त्यौहार जैसा कोई हलका सा हर्षोत्सव कर देना यही औचित्य की मर्यादा है। पर अपने यहां उसे युद्ध जीतने या पहाड़ उठाने जैसा बना लिया गया है। उस धमाल में पैसों की, समय की जितनी बर्बादी होती है उसका हिसाब लगाने पर प्रतीत होता है कि आजीविका का एक तिहाई अंश इसी कुप्रचलन में होली की तरह जल जाता है।
खर्चीली शादियां दरिद्र और बेईमान बनाती है
खर्चीली शादियां हमें किस तरह दरिद्र और बेईमान बनाती है। कितने ही परिवारों की सुख शान्ति और प्रगति किस प्रकार इस नरभक्षी पिशाचिनी की बलिवेदी पर नष्ट होती है इसे अधिकांश लोग समझते भी हैं और कोसते भी हैं। फिर भी आश्चर्य यह है कि छोड़ते किसी से नहीं बनता। इसे कुरीतियों का माया जाल ही कहना चाहिए जो तोड़ने का दम−खम करने वालों को भी अपने शिकंजे से छूटने नहीं देता।
कुरीतियों का कुचक्र
जाति-पांति के नाम पर प्रचलित ऊंच-नीच की मान्यता के पीछे न कोई तर्क है न तथ्य, न प्रमाण, न कारण। फिर भी अपने समाज में ब्राह्मण-ब्राह्मण के, ठाकुर-ठाकुर के, अछूत-अछूत के बीच जो ऊंच-नीच का भेद-भाव चलता है उसे देखते हुए लगता है कि यह सवर्ण-असवर्ण के मध्य चलने वाला विग्रह नहीं है। वरन् हर बिरादरी वाले अपनी ही उपजातियों में ऊंच-नीच का भेद बरतते-बरतते इस प्रकार बंट गये हैं मानो उनका कोई एक देश, धर्म, समाज या संस्कृति रह ही नहीं गई हो। इस दुर्विपाक से सभी परिचित है, सभी दुःखी है, सभी विरुद्ध है। फिर भी कुरीतियों का कुचक्र तो देखिये कि बरताव में सुधारक भी पिछड़े लोगों की तरह ही आचरण करते हैं।
नर-नारी के बीच बरता जाने वाला भेदभाव
नर-नारी के बीच बरता जाने वाला भेदभाव कुरीतियों की दृष्टि से और भी घिनौना है। इसने पर्दे के प्रतिबन्ध में आये जन समुदाय को दूसरे दर्जे के नागरिक की, नजरबन्द कैदी की स्थिति में ले जाकर पटक दिया है। नारी आज की स्थिति में देश की अर्थ व्यवस्था में, सामाजिक प्रगति में कुछ योगदान दे सकने की स्थिति में रही ही नहीं। अशिक्षा, उपेक्षा, अयोग्यता, पराधीनता, अस्वस्थता के बन्धनों में जकड़ी हुई, अन्धाधुन्ध प्रजनन के प्राण घातक भार के अत्याचार से लदी हुई नारी अपने आपके लिए, नर समुदाय के लिए, समूचे समाज के लिए भारभूत बनकर रह रही है।
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Published on:
21 Nov 2019 05:36 pm
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