scriptविचार मंथन : अहंकार भयानक शत्रु के समान है, यह जिसे अपने वश में कर लेता उसे नष्ट करके ही छोड़ता है- रामकृष्ण परमहंस | daily thought vichar manthan ramkrishna paramhans | Patrika News

विचार मंथन : अहंकार भयानक शत्रु के समान है, यह जिसे अपने वश में कर लेता उसे नष्ट करके ही छोड़ता है- रामकृष्ण परमहंस

locationभोपालPublished: Aug 19, 2019 05:08:41 pm

Submitted by:

Shyam

Daily thought vichar manthan: अहंकार के त्याग से उन्नति के साथ शांति और संतोष मिलता है-

daily thought vichar manthan ramkrishna paramhans

विचार मंथन : अहंकार भयानक शत्रु के समान है, यह जिसे अपने वश में कर लेता उसे नष्ट करके ही छोड़ता है- रामकृष्ण परमहंस

साधन सम्पन्न का पतन

साधन सम्पन्न का पतन होते ही समाज में उसकी असहनीय अप्रतिष्ठा होने लगती है। लोग पहले जितना उसका मान सम्मान और आदर सत्कार किया करते थे, उसी अनुपात से अवमानना करने लगते है। आदर पाकर अपमान मिलने पर कितनी पीड़ा कितना दुख और कितना आत्म संताप मिलता होगा, इसको तो कोई भुक्त भोगी ही जान सकता है।

 

daily thought vichar manthan ramkrishna paramhans

अहंकार भयानक शत्रु

अहंकार भयानक शत्रु के समान होता है। इससे क्या रिक्त और क्या सम्पन्न सभी व्यक्तियों को सावधान रहना चाहिए। यह जिसको अपने वश में कर लेता है, उसे सदा के लिए नष्ट कर डालता है। प्रकट अहंकार की हानियां तो प्रकट ही है। गुप्त अहंकार भी कम भयानक नहीं होता। बहुत लोग चतुरता के बली पर समाज में अपने अहंकार को छिपाये रहते हैं। ऊपर से बड़े विनम्र और उदार बने रहते है, किन्तु अन्दर ही अन्दर उससे पीड़ित रहा करते है।

daily thought vichar manthan ramkrishna paramhans

मिथ्या लोग

ऐसे मिथ्या लोग उदारता दिखलाने के लिए कभी कभी परोपकार और परमार्थ भी किया करते है। दान देते समय अथवा किसी की सहायता करते समय बडीद्य निस्पृहता प्रदर्शित करते हैं, किन्तु अन्दर ही अन्दर लोकप्रियता, प्रशंसा और प्रकाशन के लिए लाभान्वित बने रहते है। कई बार तो जब उनकी यह कामना, आकांक्षा अपूर्ण रह जाती है, उतनी लोकप्रियता अथवा प्रशंसा नहीं पाते, जितनी कि वे चाहते हैं, तो वे अपने परोपकार परमार्थ अथवा दानपुण्य पर पश्चाताप भी करने लगते है और बहुधा आगे के लिए अपनी उदारता का द्वार ही बन्द कर देते हैं।

 

daily thought vichar manthan ramkrishna paramhans

पाप का परित्याग

ऐसे मानसिक चोर अहंकारियों को अपने परमार्थ का भी कोई फल नहीं मिलता, बल्कि ऐसे मिथ्या दानी प्रायः पाप के ही भागी बनते है। परमार्थ कार्यों में अहंकार का समावेश अमृत में विष और पुण्य में पाप का समावेश करने के समान होता है। वैसे तो अहंकारी कदाचित ही उदार अथवा पुण्य परमार्थी हुआ करते है। पाप का गट्ठर सिर पर रखे कोई पुण्य में प्रवृत्त हो सकेगा- यह सन्देहजनक है। पुण्य में प्रवृत्त होने के लिए पहले पाप का परित्याग करना होगा। स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए रोगी को पहले रोग से मुक्त होना होगा। रोग से छूटने से पहले ही यदि वह स्वास्थ्यवर्धक व्यायाम में प्रवृत्त हो जाता है तो उसका मन्तव्य पूरा न होगा।

daily thought vichar manthan ramkrishna paramhans

अहंकार के त्याग से उन्नति

लोक-परलोक का कोई भी श्रेय प्राप्त करने में अहंकार मनुष्य का सबसे विरोधी तत्व है। लौकिक उन्नति अथवा आत्मिक प्रगति पाने के लिए किये जाने वाले प्रयत्नों में अहंकार का त्याग सबसे प्रथम एवं प्रमुख प्रयत्न है। इसमें मनुष्य को यथाशीघ्र तत्पर हो जाना चाहिए। अहंकार के त्याग से उन्नति का मार्ग तो प्रशस्त होता ही है साथ ही निरहंकार स्थिति स्वयं में भी बड़ी सन्तोष एवं शांतिदायक होती है।

**************

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो