scriptविचार मथन : बाहर से अस्थि-मांसमय दिखने वाले सद्गुरुदेव के शरीर में आत्मा का रस टपकता है जिसका कुछ शिष्य ही आनंद ले पाते हैं- समर्थ गुरु रामदास | Daily Thought Vichar Manthan : Samarth Guru Ramdas | Patrika News

विचार मथन : बाहर से अस्थि-मांसमय दिखने वाले सद्गुरुदेव के शरीर में आत्मा का रस टपकता है जिसका कुछ शिष्य ही आनंद ले पाते हैं- समर्थ गुरु रामदास

locationभोपालPublished: Aug 27, 2019 05:33:33 pm

Submitted by:

Shyam

daily thought vichar manthan : संत-महापुरुषों के इर्द-गिर्द आनंद-शांति के स्पंदन फैले रहते हैं।

विचारDaily Thought Vichar Manthan : Samarth Guru Ramdas मथन : बाहर से अस्थि-मांसमय दिखने वाले सद्गुरुदेव के शरीर में आत्मा का रस टपकता है जिसका कुछ शिष्य ही आनंद ले पाते हैं- समर्थ गुरु रामदास

विचार मथन : बाहर से अस्थि-मांसमय दिखने वाले सद्गुरुदेव के शरीर में आत्मा का रस टपकता है जिसका कुछ शिष्य ही आनंद ले पाते हैं- समर्थ गुरु रामदास

गुरु को केवल तत्त्व मानकर उनकी देह का अनादर करेंगे तो हम निगुरे रह जायेंगे। जिस देह में वह तत्व प्रकट होता है, वह देह भी चिन्मय, आनंदस्वरूप हो जाती है। समर्थ रामदास का आनंद नाम का एक शिष्य था और वे आनंद को बहुत प्यार भी करते थे। यह देखकर अन्य शिष्यों को ईर्ष्या होने लगी। वे सोचतेः “हम भी शिष्य हैं, हम भी गुरुदेव की सेवा करते हैं फिर भी गुरुदेव हमसे ज्यादा आनन्द को प्यार करते हैं।

 

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ईर्ष्यालु शिष्यों को सीख देने के लिए एक बार समर्थ रामदास ने एक युक्ति की। अपने पैर में एक कच्चा आम बांधकर ऊपर कपड़े की पट्टी बांध दी। फिर पीड़ा से चिल्लाने लगेः “पैर में फोड़ा निकला है…. बहुत पीड़ा करता है… आह…! ऊह…!” कुछ दिनों में आम पक गया और उसका पीला रस बहने लगा। गुरुजी पीड़ा से ज्यादा कराहने लगे। उन्होंने सब शिष्यों को बुलाकर कहाः “अब फोड़ा पक गया है, फट गया है। इसमें से मवाद निकल रहा है। मैं पीड़ा से मरा जा रहा हूं। कोई मेरी सेवा करो। यह फोड़ा कोई अपने मुंह से चूस ले तो पीड़ा मिट सकती है।

 

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सब शिष्य एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। बहाने बना-बनाकर सब एक-एक करके खिसकने लगे। शिष्य आनंद को पता चला। वह तुरन्त आया और गुरुदेव के पैर को अपना मुंह लगाकर फोड़े का मवाद चूसने लगा। गुरुदेव का हृदय भर आया। वे बोलेः “बस…. आनंद ! बस मेरी पीड़ा चली गयी। मगर आनंद ने कहाः “गुरुजी! ऐसा स्वादिष्ट माल मिल रहा है फिर छोड़ूं कैसे?” ईर्ष्या करने वाले शिष्यों के चेहरे फीके पड़ गये। बाहर से फोड़ा दिखते हुए भी भीतर तो आम का रस था।

 

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ऐसे ही बाहर से अस्थि-मांसमय दिखने वाले गुरुदेव के शरीर में आत्मा का रस टपकता है। महावीर स्वामी के समक्ष बैठने वालों को पता था कि क्या टपकता है महावीर के सान्निध्य में बैठने से। संत कबीरजी के इर्द-गिर्द बैठनेवालों को पता था, श्रीकृष्ण के साथ खेलने वाले ग्वालों और गोपियों को पता था कि उनके सान्निध्य में क्या बरसता है। अभी तो विज्ञान भी साबित करता है कि हर व्यक्ति के स्पंदन उसके इर्द-गिर्द फैले रहते हैं। लोभी और क्रोधी के इर्द-गिर्द राजसी-तामसी स्पंदन फैले रहते हैं और संत-महापुरुषों के इर्द-गिर्द आनंद-शांति के स्पंदन फैले रहते हैं।

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