श्रीमद्भगवद्गीता ब्रह्मविद्या है, योगशास्त्र है, जो कृष्ण और अर्जुन संवाद बनकर प्रकट हुआ है
एक बार स्वामी दयानंद शाहपुरा में निवास कर रहे थे। जहां वे ठहरे थे, उस मकान के निकट ही एक नयी कोठी बन रही थी। एक दिन अकस्मात् निर्माणाधीन भवन की छत टूट पड़ी। कई पुरुष उस खंडहर में बुरी तरह फस गए। निकलने कोई रास्ता नजर आता नहीं था। केवल चिल्लाकर अपने जीवित होने की सूचना भर बाहर वालों को दे रहे थे।
कोई भी साधना कठिन तप एवं पवित्र भावना के बिना सफल नहीं होती : योगी अनन्ता बाबा
मलबे की स्थिति ऐसी बेतरतीब और खतरनाक थी कि दर्शकों में से किसी की हिम्मत निकट जाने की हो जाय तो बचाने वालों का साथ ही भीतर घिरे लोग भी भारी-भरकम दीवारों में पिसे जा सकते हैं। तभी स्वामी जी भीड़ देखकर कुतूहलवश उस स्थान पर आ पहुंचे, वस्तुस्थिति की जानकारी होते ही वे आगे बढ़े और अपने एकाकी भुजा बल से उस विशाल शिला को हटा दिया, जिसके नीचे लोग दब गये थे।
जीवन का रस उन्होंने ही चखा है, जिनके रास्ते में बड़ी-बड़ी कठिनाइयां आई है : आचार्य श्रीराम शर्मा
संयम की साधना
आसपास एकत्रित लोग शारीरिक शक्ति का परिचय पाकर उनकी जयकार करने लगे। उनने सबको शांत करके समझाया कि यह शक्ति किसी अलौकिकता या चमत्कारिता के प्रदर्शन के लिए आप लोगों को नहीं दिखायी है। संयम की साधना करने वाला हर मनुष्य अपने में इससे भी विलक्षण शक्तियों का विकास कर सकता है।
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