scriptअपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है : स्वामी विवेकानंद | Daily Thought Vichar Manthan : Swami Vivekananda | Patrika News

अपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है : स्वामी विवेकानंद

locationभोपालPublished: Nov 29, 2019 05:46:27 pm

Submitted by:

Shyam

यदि आप संसार के हर व्यक्ति के प्रति आस्थावान् बने रहे तो सारा संसार आपको ब्रह्ममय प्रतीत होगा : स्वामी विवेकानंद

अपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है : स्वामी विवेकानंद

अपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है : स्वामी विवेकानंद

स्वयं अपने आप में ‘आस्था’

“एक समय यह मान्यता थी कि जिसे भगवान् में ‘आस्था’ नहीं वह आस्तिक भी नहीं हो सकता, जो व्यक्ति भगवान् में आस्था न रखता, उसे नास्तिक माना जाता था। परन्तु अब यह मान्यता इस रूप में स्वीकृत की जाती है कि भगवान् में ‘आस्था’ न रखने वाला व्यक्ति ही नहीं, अपितु स्वयं अपने आप में ‘आस्था’ न रखने वाला व्यक्ति भी आस्तिक नहीं माना जा सकता, अपने आप पर जो व्यक्ति अविश्वास व अनास्था रखता है व नास्तिक है।

 

सृष्टि के सभी स्वर “ॐ” में पिरोए हैं, इसे जानने के बाद कुछ और शेष नहीं रहता

 

संसार के हर व्यक्ति के प्रति आस्थावान् बने रहे

आस्तिकता का अर्थ केवल मात्र भगवान् में आस्था रखना ही नहीं, अपितु स्वयं अपने आप में आस्था रखना भी होता है। आत्मा ही तो परमात्मा है। अतः अपने आप पर विश्वास रखना, आस्थावान् रहना, उस परमात्मा के प्रति आस्थावान् रहना ही है। अपने में आस्था रखिए। अपने परिवार के सदस्यों में, पड़ोसियों में, समाज के हर व्यक्ति में “आस्था” रखिए, यदि आप संसार के हर व्यक्ति के प्रति आस्थावान् बने रहे तो सारा संसार आपको ब्रह्ममय प्रतीत होगा।

 

धिक्कार है ऐसे लोगों के जीवन पर जो जानते हुए भी… : महाकवि कालिदास

 

‘आस्था’ हीन व्यक्ति

यदि हमें अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपने गौरवमय इतिहास में “आस्था” है तो हम सदैव कर्मठ बने रहेंगे। अनेक देशों में विध्वंसकारी आयुधों के निर्माण में हो रही प्रतिस्पर्द्धा, एक-दूसरे पर अविश्वास, एक की दूसरे के प्रति अनास्था के ही तो परिणाम हैं। अपनी “आस्था” गंवाकर आस्तिक बने रहने की बात सोचना एक ढोंग ही है। ‘आस्था’ हीन व्यक्ति आस्तिक हो ही नहीं सकता।

यदि आप मानते हैं कि अनन्त कल्याणकारी परम सत्ता ही विश्व में सर्वत्र काम कर रही है, यदि आप मानते हैं कि वह सर्वव्यापी परम तत्व ही सबमें विराजमान है−ओत−प्रोत है−आपके हमारे मन और आत्मा में व्याप्त है तो फिर एक दूसरे के प्रति अविश्वास को कहाँ स्थान होगा? और जब हर मनुष्य अपने आप पर व एक दूसरे पर विश्वास करने लगेगा, आस्थावान् बन जायगा तो यह धरती ही स्वर्ग बन जायगी व हर मनुष्य देवता।

*********

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो