scriptविचार मंथन : कर्ज लेने की आदत, फिजूल खर्च की धार को मोटी कर देती है और कर्ज लेने व देने वाले मित्रों को खो देती है- विलियम शेक्सपियर | Daily Thought Vichar Manthan : William Shakespeare | Patrika News
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विचार मंथन : कर्ज लेने की आदत, फिजूल खर्च की धार को मोटी कर देती है और कर्ज लेने व देने वाले मित्रों को खो देती है- विलियम शेक्सपियर

Daily Thought Vichar Manthan : जो व्यक्ति निर्धन होकर भी कर्जदार है तो वह सबसे बड़े दुःख का कारण हैं- विलियम शेक्सपियर

Oct 18, 2019 / 04:54 pm

Shyam

विचार मंथन : कर्ज लेने की आदत, फिजूल खर्च की धार को मोटी कर देती है और कर्ज लेने व देने वाले मित्रों को खो देती है- विलियम शेक्सपियर

विचार मंथन : कर्ज लेने की आदत, फिजूल खर्च की धार को मोटी कर देती है और कर्ज लेने व देने वाले मित्रों को खो देती है- विलियम शेक्सपियर

निर्धनता मनुष्य को कई तरह से परेशान करती है इसमें कुछ भी संदेह की बात नहीं है। धन से ही मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। धन न हुआ तो जरूरी है कि कठिन समस्यायें सामने आयें। पर यदि मनुष्य निर्धन होकर भी कर्जदार है तो वह सबसे बड़े दुःख का कारण हैं। गरीबी स्वयं एक बड़ा बोझ है, कर्ज और बढ़ जाता है तो जीवन व्यवस्था की रीढ़ ही झुक जाती है। मनुष्य का सारा उल्लास समाप्त हो जाता है।

 

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धन-हीन होने पर भी स्वच्छन्द मन के आध्यात्मिक पुरुषों के जीवन में एक प्रकार का आनन्द बना रहता है। पारिवारिक संगठन, प्रेम, साहस और शक्ति का स्वभाव हो तो मनुष्य थोड़े से धन के द्वारा भी सुखमय जीवन की आनन्द प्राप्त कर लेते हैं। किन्तु कर्ज लेकर सुखोपभोग का सामग्री उपलब्ध करना एक प्रकार से भावी जीवन के सुख शान्ति को ही दाव पर चढ़ा देना है। ऋणी होकर मनुष्य कभी सुखी नहीं रह सकता। डॉ. रसर का यह कथन कि “मनुष्य ऋण लेने नहीं जाता, दुख खरीदने जाता है” सत्य ही है। कर्ज लेकर सुख की कल्पना सचमुच भ्रामक है।

 

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न हो ऋणी, न हो महाजन, क्योंकि कर्ज लिया हुआ धन अपने को भी खो देता है और देने वाले मित्रों को भी। कर्ज लेने की आदत मितव्ययिता की धार को मोटी कर देती है।” उचित रीति से धन खर्च करने की बुद्धि मनुष्य में तब आती है जब वह धन ईमानदारी और परिश्रम से कमाया गया हो। मेहनत से कमाया एक पैसा भी खर्च करते हुये दर्द पैदा करता है। उससे वही करम लेना उपयुक्त समझते हैं जिससे किसी तरह का पारिवारिक उत्तरदायित्व पूर्ण होता है। जो धन बिना परिश्रम के प्राप्त हो जाता है उससे किसी प्रकार का मोह नहीं होता, इसलिये उसका अधिकाँश उपयोग भी उड़ाने-खाने या झूठी शान-शौकत दिखाने में चला जाता है।

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