
वैसे तो 11वें रुद्रावतार होने के चलते हनुमान जी जन्म से ही अत्यंत बलशाली व चमत्कारिक रहे। लेकिन इनकी शक्तियों व चमत्कारों को और अधिक धार देवताओं से मिले वरदानों से मिली। ऐसे में आज हम जानते हैं कि श्रीहनुमान जी को ये वरदान कब और किस देवता से मिले?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसर हनुमान जी ने बचपन में सूर्यदेव को एक फल समझ कर मुंह में रख लिया था, ऐसे में बिना वरदान के सूर्य को खा लेना उनकी वरदानों से पूर्व की विशेष शक्ति को दर्शाता है। हनुमान जी का उस समय तक नाम मारुति था। उस समय बालपन में जब उन्होंने सूर्यदेव को फल समझ कर निगलना चाहा, तब देवराज इंद्र ने सूर्य की रक्षा के लिए मारुति पर अपने वज्र से प्रहार किया।
इंद्र के वज्र का प्रहार मारुति की ठुड्डी (हनु) पर हुआ जिससे वे अचेत होकर पृथ्वी पर आ गिरे। पवनदेव ने जब यह देखा कि इंद्र देव ने उनके औरस पुत्र(प्रकृत पुत्र) पर प्रहार किया है, तो इससे नाराज होकर उन्होंने संसार से प्राणवायु खींच ली। जिससे समस्त प्राणी मृत्यु के निकट पहुंच गए।
यह देख परमपिता ब्रह्मा स्वयं वहां पहुंचे और उन्होंने पवनदेव को प्राणवायु लौटने का आदेश दिया, ताकि सृष्टि सुचारु रूप से चल सके। उन्होंने ये भी समझाया कि सूर्य नवग्रहों के प्रमुख हैं और यदि उनका अहित होता तो समस्त पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाता। इसी कारण इंद्र ने उनकी रक्षा का जो उपाय किया गया, वो आवश्यक था।
ये सुनकर पवनदेव ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि पहले वे उनके पुत्र के प्राण बचाएं। उनकी प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा जी ने मारुति को चेतन किया और उनके बल की प्रशंसा की। चूंकि इंद्र के प्रहार से मारुति की ठुड्डी, जिसे संस्कृत में "हनु" कहा जाता है, पर चोट आई थी, इसी कारण ब्रह्मदेव ने उन्हें हनुमान नाम दिया।
हनुमान ने ब्रह्मदेव से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी। उनका ऐसा बल और नम्रता देखकर वहां उपस्थित देवताओं ने उन्हें कई वरदान दिए। रामचरितमानस में हनुमान को आठ देवताओं द्वारा आठ वरदान दिए जाने का वर्णन मिलता है। उन वरदानों के कारण ही हनुमान त्रिलोक में अजेय हो गए।
चलिए जानते हैं हनुमान को मिले केवल उन आठ वरदानों के बारे में, इनमें हनुमान की अष्ट सिद्धियों, नव निधियों या उनकी गौण सिद्धियां या बाद में मिले वरदान शामिल नहीं हैं। यहां हम केवल उन आठ वरदानों की बात कर रहे हैं, जो उस समय हनुमानजी को मिले।
ऐसे समझें किस देव ने कौन सा वरदान दिया-
ब्रह्मा: परमपिता ब्रह्मा ने हनुमान को दीर्घायु और प्रभु की अनन्य भक्ति का वरदान दिया। इसके साथ ही उन्होंने हनुमान को ये भी वरदान दिया कि हनुमान सभी अस्त्रों, यहां तक कि ब्रह्मदण्ड द्वारा भी अवध्य रहेंगे। उन्होंने हनुमान को पवन की गति से भ्रमण करने का वरदान देने के साथ ही इच्छाधारी होने के अलावा ब्रह्मास्त्र से भी रक्षा का वरदान दिया। इसी कारण जब अशोक वाटिका में मेघनाद ने हनुमान पर ब्रह्मास्त्र चलाया तो ब्रह्माजी के वरदान के कारण वे उससे पूरी तरह से बच सकते थे, किन्तु इससे ब्रह्मास्त्र का अपमान होता इसीलिए उन्होंने ऐसा नहीं किया।
रूद्र: स्वयं रुद्र देव यानि भगवान शंकर ने हनुमानजी को ये वरदान दिया कि वे उनके शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेंगे। इसी का कारण था कि भगवान शंकर ने कुम्भकर्ण को अपने त्रिशूल की जो प्रतिलिपि प्रदान की थी, उसे जब युद्ध में लक्ष्मण पर चला दिया था तब महादेव द्वारा दिए गए वरदान के फलस्वरूप ही हनुमान ने उसे बीच में ही पकड़ कर तोड़ डाला था।
इंद्र: इंद्र ने हनुमान को दो वरदान दिए। पहले वरदान में उन्होंने कहा कि हनुमान अब से उनके वज्र से भी अवध्य रहेंगे। यही नहीं उन्होंने हनुमान के पूरे शरीर को वज्र का बना दिया जिस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव ना हो। उनका शरीर वज्र का हो जाने के कारण ही उनका एक और नाम वज्रांग पड़ा जो बाद में अपभ्रंश होकर बजरंग हो गया।
सूर्य: हनुमानजी ने भले ही सूर्य को निगलने का प्रयास किया था, किन्तु उन्होंने भी हनुमान को दो वरदान दिए। इसमें पहले वरदान के रूप में उन्होंने हनुमान का अपने तेज का सौंवा भाग प्रदान किया, जिससे हनुमान का तेज भी सूर्य के समान हो गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने हनुमान को अपने शिष्य के रूप में भी स्वीकार किया और ये वरदान दिया कि समय आने पर वे ही उन्हें समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करेंगे। जिससे उनके ज्ञान की समता करने वाला पृथ्वी पर और कोई नहीं होगा।
यम: यमराज ने हनुमान को यमदण्ड से सुरक्षित रहने का वरदान दिया। यमराज ने कहा कि जब तक हनुमान धर्म पथ पर रहेंगे, मृत्यु उन्हें नहीं छू पायेगी। उनके इस वरदान के कारण हनुमान एक प्रकार से अवध्य हो गए।
कुबेर: यक्षराज कुबेर ने हनुमान को युद्ध में सदैव स्थिर रहने का वरदान दिया। उन्होंने कहा कि कभी भी इस बालक को युद्ध में किसी प्रकार का कोई विषाद नहीं होगा और इसी कारण इसे युद्ध में जीतना असंभव होगा। उन्होंने युद्ध में हनुमान को अपनी गदा से भी अभय प्रदान किया।
वरुण: जल के देवता वरुण ने हनुमान को जल में अवध्य रहने का वरदान दिया। उन्होंने हनुमान को ये वरदान भी दिया कि 1000000 वर्षों की आयु तक उन्हें मेरे वरुण पाश से अभय प्राप्त होगा और उनकी मृत्यु नहीं होगी।
विश्वकर्मा: देवशिल्पी विश्वकर्मा ने हनुमान को चिरंजीवी रहने का वरदान देने के साथ ही कहा कि मेरे द्वारा निर्मित जितने भी अस्त्र-शस्त्र हैं, हनुमान उन सभी से अवध्य रहेंगे। देवों और दैत्यों के लगभग सभी आयुध विश्वकर्मा ने ही बनाये थे, इसी कारण उनके वरदान द्वारा हनुमान लगभग सभी अस्त्र-शस्त्रों से अवध्य और अजेय हो गए।
Published on:
07 Nov 2022 01:48 pm
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