scriptजानिए क्या है दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनने के पीछे की कहानी | history behind construction of dakshineswar kali temple | Patrika News

जानिए क्या है दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनने के पीछे की कहानी

locationनई दिल्लीPublished: Dec 22, 2017 11:28:12 am

Submitted by:

Priya Singh

उनके सपने में देवी काली प्रकट हुई और उनसे कहा कि वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है।

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नई दिल्ली। दक्षिणेश्वर काली मंदिर हुगली नदी तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित है। अनुश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर समूह में भगवान शिव के कई मंदिर थे जिसमें से अब केवल 12 मंदिर बचे हुए हैं।
बेलूर मठ तथा दक्षिणेश्‍वर मंदिर बंगालियों के अध्‍यात्‍म का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर का बहुत बड़ा इतिहास है और कई मान्यताएं भी 1847 की बात है जब देश में अंग्रेजों का शासन था। पश्चिम बंगाल में रानी रासमनी नाम की एक बहुत ही अमीर विधवा थी। उनके जीवन में सबकुछ था मगर पति का सुख नहीं था। रानी रासमनी जब उम्र के चौथे पड़ाव पर आईं तो उनके मन में सभी तीर्थों के दर्शन करने का खयाल आया।
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रानी रासमनी की देवी माता में बहुत बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने सोचा कि वो अपनी तीर्थ यात्रा की शुरुआत वराणसी से करेंगी और वहीं रहकर देवी का कुछ दिनों तक ध्यान करेंगी। उन दिनों वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई रेल लाइन की सुविधा नहीं थी। कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए लोग नाव से जाया करते थे। जैसा की आप जानते हैं दोनों ही शहरों से से गंगा नदी गुज़रती है इसलिए लोग गंगा के रास्ते ही वाराणसी तक जाते थे। रानी रासमनी ने भी यही रास्ता अपनाया। और फिर उनका काफिला वाराणसी जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन जाने के ठीक एक रात पहले रानी के साथ एक अजीब घटना घटी।
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ऐसी कहानी प्रचलित है कि मन में देवी का ध्यान कर के वो सो गईं। रात में एक सपना आया। कहा जाता है उनके सपने में देवी काली प्रकट हुई और उनसे कहा कि वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है। तुम गंगा के किनारे मेरी प्रतिमा को स्थापित करो। एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराओ। “मैं उस मंदिर की प्रतिमा में खुद प्रकट होकर श्रद्धालुओं की पूजा को स्वीकार करुंगी”। तुरंत ही यह सपना देखकर रानी की आंख खुली। सुबह होते ही वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की खोजना शुरू कर दिया गया। कहते हैं कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करते करते आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए।
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फिर सुबह होते ही रानी का वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी गई। मायता है कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करने आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए। फिर वह जगह खरीद ली गई और मंदिर बनाने का काम तेजी से शुरु हो गया। ये बात 1847 की है और मंदिर का काम पूरा हुआ 1855 यानी कुल आठ सालों में।
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आपको बता दें विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस का इस मंदिर से बहुत ही गहरा नाता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। लंबी-लंबी कतारों में घंटो खड़े होकर देवी माँ काली के दर्शन का इंतज़ार करते हैं। कहते हैं कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर काली ने दर्शन दिया था। दक्षिणेश्वर काली मंदिर से लगा हुआ परमहंस देव का कमरा है, जिसमें उनका पलंग तथा दूसरे स्मृतिचिह्न सुरक्षित हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बाहर परमहंस की धर्मपत्नी श्रीशारदा माता तथा रानी रासमणि का समाधि मंदिर है और वह वट वृक्ष है, जिसके नीचे परमहंस देव ध्यान किया करते थे।

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