नई दिल्ली। किसी भी देवी या देवता के पूजा में परिक्रमा का खास महत्व होता है। ऐसा भी माना जाता है कि पािक्रमा के बिना भगवान का दर्शन पूर्ण रूप से नहीं होता है। अवश्य रूप से ही परिक्रमा करना किसी भी देवी-देवता की पूजा का खास अंग है और तो और शास्त्रों में भी ये माना गया है कि परिक्रमा करने से पापों का विनाश होता है और अगर बाद विज्ञान के दृष्टिकोण से किया जाएं तो शारीरिक ऊर्जा के विकास में परिक्रमा का विशेष महत्व है। ध्यान मे रखने वाली बात ये है कि भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ से शुरू करना चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। यदि बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा किया जाएं तो इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जिस कारण शारीरिक बल कम हो जाता है।
कभी- कभी गलती सेे की गई उल्टी परिक्रमा हमारे व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाती है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इस कारण से परिक्रमा को ‘प्रदक्षिणाÓ के नाम से भीजाता है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा के लिए अलग-अलग संख्या बताई गई है। जैसे कि सूर्य देव की सात, गणेशजी की चार, श्री विष्णु और उनके सभी अवतारों की पांच, मां दुर्गा की एक, हनुमानजी की तीन, शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए। शिव की मात्र आधी ही प्रदक्षिणा इसलिए की जाती है, क्योंकि लोगों के बीच ये मान्यता है कि जलधारी का उल्लंघन नहीं किया जाता है और जलधारी तक पंहुचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है।
परिक्रमा करते समय हमेशा इस मंत्र का जाप करना चाहिए- यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।। इस मंत्र का अर्थ ये है कि जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए और परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें। इस तरह आगे से आप भी परिक्रमा करते वक्त इन चीज़ो का ध्यान अवश्य रूप से रखें।