
Karwa Chauth Mantra (photp- gemini ai)
Karwa Chauth Mantra : हिंदू धर्म में करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घ आयु, सुख और समृद्ध वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। साल 2025 में करवा चौथ का पर्व 10 अक्टूबर, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।
पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर की रात 10 बजकर 54 मिनट पर शुरू होकर 10 अक्टूबर की शाम 7 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। मान्यता है कि इस दिन सही विधि से पूजा और विशेष मंत्रों के जाप से देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
करवा चौथ के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और पूजा स्थान पर बैठें। हाथ में जल और फूल लेकर व्रत का संकल्प करें। संकल्प के समय यह मंत्र बोलें "मम सुखसौभाग्यपुत्र-पौत्रादि सुस्थिरश्रीप्राप्तये करकचतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।" इस मंत्र का जाप करते समय मन शांत रखें और पूरे मन से अपने व्रत की भावना व्यक्त करें। ऐसा करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
करवा चौथ पर मंत्र जाप करते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें। किसी एक मंत्र का 11, 21, 51 या 108 बार जाप करें। मंत्र जाप के समय मन एकाग्र रखें और श्रद्धा से चंद्रमा को अर्घ्य दें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने से पहले पूजा की थाली में एक लोटा या कलश रखें और उसमें शुद्ध जल भरें। इसमें कच्चा दूध, अक्षत (चावल), मिश्री और चाहें तो चांदी का सिक्का भी डालें। चंद्र दर्शन के लिए छलनी तैयार रखें, लेकिन ध्यान रहे चंद्रमा को सीधा नहीं देखना चाहिए। छलनी से या पानी में प्रतिबिंब देखकर ही चंद्रमा का दर्शन करें।
थाली में जल और दीपक लेकर पहले चंद्रमा का दर्शन करें, फिर छलनी से अपने पति को देखें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और प्रार्थना करें “हे चंद्रदेव! मेरे पति को दीर्घायु और सुखी जीवन का आशीर्वाद दें।” फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें और मिठाई या फल ग्रहण करें।
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥
चंद्र अर्घ्य के अलावा आप चाहें तो चंद्रमा की पूजा के समय चंद्र देव के मंत्रों का भी जाप कर सकती हैं.
ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम:
ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:
ॐ सों सोमाय नम:
ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम। ऊँ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम।।
Updated on:
10 Oct 2025 12:39 pm
Published on:
09 Oct 2025 01:03 pm
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