
Pitru Paksha rituals 2025|फोटो सोर्स – Freepik
Pitru Paksha Kutup Kaal 2025: भारतीय संस्कृति में पितरों का सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना एक अनिवार्य परंपरा है। इस समय किए गए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्मों में समय का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि यदि ये कर्म सही समय यानी “कुतुप काल” में किए जाएं, तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।जानते हैं में कुतुप काल क्यों इसे इतना महत्वपूर्ण माना गया है।
सहस्रों से पितृ पक्ष के दिनों को 15 मुहूर्तों में बाँटा गया है। ऐसा माना जाता है कि इन 15 मुहूर्तों में से एक मुहूर्त कुतुप काल का होता है और इसमें आठवां मुहूर्त कुतुप काल माना जाता है।
मान्यता के अनुसार, इस दौरान पितरों का मुख्य रुख पश्चिम दिशा की ओर हो जाता है और वे अपने वंशजों द्वारा श्राद्ध में अर्पित किया गया भोग श्रद्धा से स्वीकार कर लेते हैं।
यह समय लगभग सुबह 11:30 बजे से दोपहर 12:42 बजे तक रहता है। इस समय श्राद्ध करने से उसका फल सबसे अधिक फलदायी माना जाता है।
माना जाता है कि यदि श्राद्ध कुतुप काल में न करके किसी अन्य समय किया जाए तो अनुष्ठान अधूरा रह जाता है। पितरों को अर्पित भोग पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं हो पाता और वे असंतुष्ट लौट जाते हैं। ऐसी स्थिति में परिवार पर अशांति, आर्थिक रुकावटें या स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयां आने की आशंका रहती है।
पुराणों में सूर्य को पितरों का प्रतीक माना गया है। जब सूर्य मध्य आकाश में अपनी पूरी आभा और तेज के साथ स्थित होता है, तब उसका प्रभाव सर्वोच्च होता है। यही कारण है कि दोपहर का समय पितरों तक अर्पित भोजन और तर्पण को पहुंचाने के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। इस समय किया गया कर्म पितरों की आत्मा को शांति और संतोष प्रदान करता है।
Updated on:
13 Sept 2025 03:16 pm
Published on:
13 Sept 2025 03:04 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
