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Mahakal Temple Tradition: क्यों बंद कर दी गई महाकाल की भात पूजा, कौन कराता था यह अनुष्ठान

भारत के मंदिरों में तरह-तरह की प्रथाएं होती हैं, जिनमें समय-समय पर बदलाव भी होता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकाल मंदिर की भी एक परंपरा (Mahakal Temple Tradition) 20 साल पहले बंद कर दी गई, यह परंपरा थी महाकाल के भातपूजा की परंपरा (Bhat Puja Ki Parampara)... आइये जानते हैं क्यों बंद हुई यह प्रथा...

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Pravin Pandey

May 30, 2023

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महाकाल मंदिर में भात पूजा की परंपरा

कभी मंगलनाथ की तर्ज पर बाबा महाकाल की भी भात पूजा (Mahakal bhat puja ritual ) होती थी। इस दौरान करीब 45 किलो चावल से बाबा का आकर्षक श्रृंगार कर पूजा-पाठ की जाती थी। उस समय के पुजारी-पुरोहित बाबा का चावल से ऐसे ही श्रृंगार करते, जैसे वर्तमान में भांग से श्रृंगार किया जाता है।

बीते 20-25 वर्षों से बाबा की भात पूजा की प्रथा खत्म हो गई। इसके पीछे शिवलिंग के क्षरण तथा बाबा को भात पूजा का प्रावधान नहीं होने जैसे कारण बताए जाते हैं। हालांकि भात पूजा देख चुके लोगों का कहना है कि महाकाल की भातपूजा से उनका दिव्य रूप दिखाई देता था।

अब मंगलनाथ मंदिर में होती है ये पूजा (mangalnath mandir ujjain)
महाकाल में भले ही अब भातपूजा न हो, लेकिन मंगलनाथ मंदिर में भात पूजा की परंपरा जारी है। यहां बाकायदा मंदिर प्रशासन की ओर से शुल्क लेकर भातपूजा कराने के लिए व्यवस्था की गई है। यहां प्रतिदिन 10 से 12 बजे के बीच यह पूजा होती है और इसके लिए 1100 रुपए का शुल्क रखा गया है। बता दें कि मंगलनाथ मंदिर के ऊपर से ही कर्क रेखा गुजरती है।

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ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास का कहना है कि महाकाल मंदिर में पहले भातपूजा होती थी। हालांकि, कायदे से यह नहीं होना चाहिए था, बाद में इस पर चर्चा के बा बंद करा दिया गया। दही चावल पूजा का प्रावधान सिर्फ मंगल के लिए है, इसलिए मंगलनाथ मंदिर में यह पूजा की जाती है।

शिप्रा महासभा अध्यक्ष रविंद्र त्रिवेदी का कहना है कि महाकाल मंदिर में 20 वर्ष पहले भातपूजा की परंपरा थी। भक्त की मान्यता पूरी होने पर 40-45 किलो चावल के साथ पूजा करवाई जाती थी। बाद में यह पूजा बंद करा दी गई।

मन्नत पूरी होने पर कराते थे भातपूजा
महाकाल की भातपूजा वर्ष 2004 से पहले होती थी। उस समय भक्त मन्नत पूरी होने पर भातपूजा कराते थे । इसके अलावा मंगलदोष के निवारण के लिए भी ये पूजा होती थी। भातपूजा के लिए भक्त ही करीब 40-45 किलो चावल भेंट करते थे। चावल से शिवलिंग पर श्रृंगार करते थे और मन्नत पूरी होने वाले यजमान पूजा-पाठ करते थे। पूजा में ढाई से तीन घंटे लगते थे।