
premanand ji maharaj pravachan advice for bhakt: भक्तों को प्रेमानंद महाराज की सलाह (Photo Credit: wallpapercave.com and Patrka Design)
Advice For Bhakt: प्रेमानंद जी महाराज ने भक्तों के लिए 11 सावधानियां रखने की सलाह दी है। कहा है कि इससे उन्हें जीवन का परमलाभ और सुख मिल सकता है। आइये जानते हैं जीवन का लक्ष्य पाने के लिए भक्त क्या करे
प्रेमा नंद महाराज के अनुसार जीवन का पहला लक्ष्य भगवत प्राप्ति होना चाहिए। चरम लक्ष्य ये होना चाहिए कि मुझे इसी जन्म में भगवत प्राप्ति करना है। इसी के लिए मनुष्य को अपना जीवन अर्पित करना चाहिए।
बुद्धि का प्रिया प्रियतम में आश्रय जरूरी है, बुद्धि विचार करे तो श्यामा श्याम का, किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान का चिंतना श्यामा श्याम के संबंध से होना चाहिए वर्ना वस्तु, व्यक्ति स्थान में आसक्ति है। वह बांध लेगी, आप श्यामा श्याम तक नहीं पहुंच पाएंगे। बुद्धि ये निश्चय कर ले कि हम श्यामा श्याम के हैं और वो हमारे हैं, सुख है दुख है, उनके ही नाम, धाम, लीला में।
उपासक को गुरु के दिए हुए नाम मंत्र में निष्ठा रखनी चाहिए। जाग्रत में ब्रह्मा भी उपदेश करें तो गुरु के वचन नहीं टाल सकते। उपासक तभी आगे बढ़ सकता है, जब वह गुरु पर विश्वास रखे , तभी ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती है वर्ना माया रौंद देगी। गुरु के वचन पर विश्वास पर बिना नाम के ही कल्याण हो जाता है। गुरु के वचनों पर विश्वास कर साधारण नाम बोलने पर वो भी भगवान को प्रिय हो जाता है, क्योंकि सबकुछ तो सर्वज्ञ महेश्वर का है और सबमें महेश्वर ही हैं।
इसलिए गुरु प्रदत्त नाम, रुप, गुण लीला, उपासना सांगोपांग ग्रहण करना, भगवत प्राप्ति के लक्ष्य के लिए सबसे जरूरी है। गुरु ने जो नाम और मंत्र दिया, इससे बढ़कर किसी बात का महत्व नहीं होना चाहिए। किसी की निंदा नहीं, सबनाम प्रभु के पर हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ नाम जो गुरु ने दिया जो मंत्र दिया, यही सोचना चाहिए, उसी का ध्यान करना चाहिए। पार्वती जी ने एक बार कहा था कि मैं गुरु नारद के उपदेश की अनदेखी नहीं कर सकती, भले ही महेश आकर कुछ कह दें।
इंद्रियां भोग विलास के लालायित रहती है, इन्हें भोग देना है वर्ना जीवित नहीं रह सकते, शरीर चलाने के लिए इन्हें विषय का पान भी कराना है। ऐसे में इंद्रियों को विषय भागवतिक ग्रहण कराना है। उदाहरण के लिए पानी भगवान को अर्पित कर पीना, भोजन भगवत स्वरूप प्रसाद, देखना भगवत भाव, हर इंद्रिय के विषय को भागवत संबंध से युक्त कर लेना है।
जीव का चिंतन प्रत्ये क्षण पदार्थ, व्यक्ति, परिस्थिति, विचार भोगों, क्रियाओं संबंधियों के, जहां-जहां जाए वहां से हटाकर लक्ष्य श्यामा श्याम में लगाओ और प्रिया प्रियतम की भावना करो। जीवन का प्रत्येक पल श्यामा श्याम के लिए अर्पित कर दो।
चित्त की एक-एक वृत्ति से आराध्य देव हटने न पाएं, जैसा गोपियों ने किया था। जब वो दही बेचने जाती थीं तो उन्हें दही की सुधि ही नहीं रहती थी, चित्त की वृत्ति में माधव बसे थे तो कोई कहता माधव ले लो, कोई गोपाल बेचता, इस तरह हर वृत्ति को भगवताकार करना है, इससे आराध्य हटने न पाएं।
सारी आसक्ति, ममता युगल सरकार में होना चाहिए, इससे सुख मिलता है। जिससे अपनापन होता है उसकी बात सुनना अच्छी लगती है, दिशा अच्छी लगती है, वायु अच्छी लगती है, आलिंगन करती लगती है। नाम में अपार सुख आसक्ति होने पर अनुभव होगी। भाव, कुभाव, अनख, आलस से जपो विश्वास कर जपो, फल मिलेगा।
राग का धागा सूक्ष्म होता है। ये बड़ा खतरनाक है, किसी से राग है तो संकट पर वो धागा दिखाई देता है। यह राग श्यामा श्याम के चरण में अर्पित हो जाए तो अनुराग कहलाता है। इसमें बाधा आए तो द्वेष उत्पन्न हो जाता है। द्वेष न हो। जन्म मरण का चक्र का कारण राग है।
प्रत्येक परिस्थिति में पूर्ण कृपा, मंगल विधान देखना, जैसी भी स्थिति आए कृपा ही समझना, परिणाम में कृपा होगी। शरणागति में कमी न हो, साधन से मन हटाओ और कृपा समझो तब बात बनेगी।
प्रेम पथिक का जीवन शांत, विनम्र, संयमी, सदाचार पूर्ण और त्याग मय होना चाहिए। प्रभु के सिवा कुछ अच्छा न लगे, कोई द्वंद्व अशांत न कर सके।
राधा माधव की सेवा, प्रेमीजनों का संभाषण दर्शन, राधा माधव के पदों का गायन, तब प्रेमानंद की तरंगे उछलते हुए लीला रस में प्रवेश हो जाएगा। इसलिए अपने जीवन को महाप्रेममय बनाने के लिए सत्संग में श्रवण भी सौभाग्यशाली है। इसे व्यर्थ न जानें दें, मनन करो। यंत्रों का सही प्रयोग बहुत सहायक हैं, दस बार सुनें। बड़ी कृपा भगवान ने की, ऐसे समझें। मोबाइल के दोष स्वीकार न करें, मतलब की बात सत्संग करो, जीवन का परम लाभ मिलेगा।
Published on:
01 Jun 2025 08:01 pm
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