
Rawan cut his heads here Hindi news
रामायण के प्रमुख पात्रों में एक रावण भी है, जिसे हम राक्षसराज या अधर्म का कार्य करने वाले के रुप में भी जानते हैं। लेकिन वह एक बहुत ज्ञानवान तो था ही एक बड़ा तपस्वी भी था। उसकी इसी तपस्या के चलते उसका एक ओर नाम पड़ा दशानन, यानि दस हैं जिसके आनन (सिर)...
ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां रावण ने अपनी तपस्या के चलते भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने कई सिरों की बलि तक दे दी थी। दरअसल मान्यता है कि देवीभूमि उत्तराखंड के नंदप्रयाग से 10 किलोमटीर दूर एक छोटे से गांव में बैरास कुंड स्थित है।
जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी और इस जगह अपने 10 सिरों की बली देने की तैयारी की थी। इस जगह का नाम तब से दशोली पड़ा, जो अब दसौली में परिवर्तित हो गया है।
दरअसल देवभूमि उत्तराखंड में एक जगह है दशोली। कहते हैं ये वही जगह है, जहां रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। वहीं नंदप्रयाग में आज भी वो कुंड मौजूद है, जहां पौराणिक काल के सबूत मिलते हैं।
अलकनंदा और मन्दाकिनी नदियों के संगम पर बसा नंदप्रयाग पांच धार्मिक प्रयागों में से दूसरा है। पहला प्रयाग है विष्णुप्रयाग, फिर नंदप्रयाग, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग और आखिर में आता है कर्णप्रयाग। हरे-भरे पहाड़ और नदियों से घिरे नंदप्रयाग में आध्यात्मिक सुकून मिलता है। ये शहर बदरीनाथ धाम के पुराने तीर्थमार्ग पर स्थित है।
यहीं से 10 किलोमीटर दूर स्थित है बैरास कुंड। कहते हैं इस जगह रावण ने अपने अराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। रावण ने यहीं पर अपने सिरों की बलि दी थी। तब से इस जगह को दशोली कहा जाने लगा।
केदारखंड और रावण संहिता में भी है जिक्र...
यहां बैरास कुंड के पास महादेव का मंदिर भी है। जिसका जिक्र केदारखंड और रावण संहिता में भी मिलता है। पौराणिक काल में इसे दशमौलि कहा जाता था। बैरास कुंड महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूरी होती है। शिवरात्रि और श्रावण मास के अवसर पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में दसमोलेश्वर के नाम से बैरास कुंड क्षेत्र का उल्लेख किया गया है।
बैरास कुंड में जिस स्थान पर रावण ने शिव की तपस्या की वह कुंड, यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां विद्यमान है। बैरास कुंड के अलावा नंदप्रयाग का संगम स्थल, गोपाल जी मंदिर और चंडिका मंदिर भी प्रसिद्ध है। देवभूमि में स्थित शिव के धामों में इस जगह का विशेष महत्व है। यहां पुरातत्व महत्व की कई चीजें मिली हैं। कुछ समय पहले यहां खेत की खुदाई के दौरान एक कुंड मिला था। इस जगह का संबंध त्रेता युग से जोड़ा जाता है। वहीं पुराणों में भी रावण के हिमालय क्षेत्र में तप करने का उल्लेख मिलता है।
Published on:
03 May 2020 09:20 am
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
