
संत रविदास की अनमोल बातें
Guru Ravidas Biography: संत रविदास का जन्म 1376 ईं. माघ पूर्णिमा (Magh Purnima) रविवार को वाराणसी के गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। कहते हैं रविवार को जन्म के कारण ही इनका नाम रविदास पड़ा था। इनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कर्मा देवी था। ये कबीरदास के गुरु भाई और रामानंद के शिष्य थे। चर्मकार कुल से होने के कारण जूते बनाने का कार्य करते थे।
मानवतावादी संत रविदास का कई जगहों पर संत रविदास का नाम रैदास भी मिलता है। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब भारत में धर्मांतरण जोर पर था। लेकिन लालच और दबाव के बाद भी उन्होंने धर्मांतरण करने की जगह मानवता की सेवा पर ही ध्यान दिया। इनके भक्तों में हर जाति के अनुयायी हैं। कहा जाता है कि एक बार सदना पीर उनका धर्मांतरण कराने पहुंचा था। लेकिन वह उसके दबाव के आगे नहीं झुके। कबीरदास ने संतन में रविदास कहकर उनका उल्लेख किया है। चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है, वहीं 1540 ईं. में उन्होंने देह त्याग दिया।
Sant Ravidas Jayanti, Magh Purnima, संत रविदास, रविदास, माघ पूर्णिमा, पूर्णिमा, संत रविदास के विचार, संत रविदास के अनमोल विचार, संत रविदास जयंती, sant ravidas thought, sant ravidas ki anmol baten
गुरु रविदास से जुड़ी एक कथा के अनुसार, वाराणसी में संत रविदास आजीविका के लिए जूते बनाते थे, लेकिन इसे भी उन्होंने धन कमाने की जगह सेवा का माध्यम बना लिया। जो भी संत फकीर उनके द्वार पर आते, वो उन्हें बिना पैसे लिए जूते पहना देते। इससे घर का खर्च चलाना मुश्किल होने लगा। इससे उनके पिता ने उन्हें घर से बाहर थोड़ी से जमीन देकर अलग कर दिया, यहां संत रविदास ने कुटिया बनाई और वहीं रहकर संतों की सेवा करते और जो कुछ बच जाता उससे गुजारा करते।
एक दिन एक ब्राह्मण उनके यहां आया, उसने कहा कि गंगा स्नान करने के लिए जा रहा हूं एक जूता चाहिए। संत रविदास ने उसे बिना पैसे लिए जूता दे दिया और एक सुपारी ब्राह्मण को दिया, कहा कि इसे मेरी ओर से गंगा मैया को दे देना। जब ब्राह्मण गंगा स्नान के बाद पूजा कर चलने लगा तो उसने अनमने ढंग से संत रविदास की दी सुपारी गंगा में उछाल दी।
इस पर एक चमत्कार हुआ, गंगा मैया प्रकट हुईं और सुपारी हाथ में ले ली। साथ ही एक सोने का कंगन ब्राह्मण को दिया। कहा कि इसे रविदास को दे देना।
इस घटना से ब्राह्मण भाव विभोर हुआ, उसने संत रविदास से कहा कि आपके कारण मुझे गंगा मैया के दर्शन हुए। आपकी भक्ति के प्रताप से माता ने आपकी सुपारी स्वीकार की।
धीरे-धीरे यह खबर पूरी काशी में फैल गई। इस पर कई विरोधी एकजुट हो गए और कहा कि यह कहानी पाखंड है। संत रविदास सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं। इस पर संत रविदास भजन गाने लगे, कुछ देर बाद जिस कठौत के पानी से संत रविदास चमड़ा साफ करते थे, उससे गंगा मैया प्रकट हुईं और दूसरा कंगन भेंट किया। इससे विरोधियों का सिर नीचा हो गया। इसके बाद से प्रसिद्ध हो गया, जौ मन चंगा त कठौती में गंगा।
संत रविदास भक्त कवि थे, उन्होंने भी अपने गुरुभाई और समकालीन कवि कबीरदास के समान आडंबरों पर प्रहार किए हैं। आइये जानते हैं संत रैदास के अनमोल विचार जो आगे बढ़ने की राह दिखाते हैं।
1. भगवान उस हृदय में निवास करते हैं जिसके मन में किसी के मन में बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष भाव नहीं है।
2. ब्राह्मण मत पूजिए होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन कहकर उन्होंने जन्म की जगह कर्म कीश्रेष्ठता पर जोर दिया। स्वामी रविदास ने कहा कि कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं अपने कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं।
3. हमें कर्म करते रहना चाहिए और फल की आशा छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य।
4. कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म लेने न दें, छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है, लेकिन विशालकाय हाथी ऐसा नहीं कर सकता।
5. मोह माया में फंसा व्यक्ति भटकता रहता है, इस माया को बनानेवाला ही मुक्तिदाता है।
6. जौ मन चंगा त कठौती में गंग, अगर मन पवित्र है तो व्यक्ति के आसपास पवित्रता ही रहेगी।
Updated on:
23 Feb 2024 11:42 am
Published on:
23 Feb 2024 11:34 am
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
