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Shradh Parv : पितृदोष निवारण के लिए ये हैं विशेष उपाय

जानें कब, क्या और कैसे करना है? ये कर्म

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कई बार आपने भी देखा होगा कि कुछ लोगों के जीवन से तमाम कोशिशों के बावजूद दिक्कतें खत्म ही नहीं होतीं। इसके लिए उनके द्वारा तमाम कोशिशों के साथ ही धन खर्च करना भी केवल बर्बादी ही सिद्ध होता है। ऐसे लोगों के संबंध में अधिकांश इसका कारण कुंडली में लगा एक दोष होता है। इस दोष को सामान्य भाषा में पितृदोष के नाम से जाना जाता है।

जानकारों के अनुसार यह एक ऐसा दोष है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलने के साथ ही हर पीढ़ी को परेशान करता है। और इसका निवारण तभी होता है जब किसी पीढ़ी में कोई विधि-विधान पूर्वक इसके समाधान के लिए धार्मिक विधि के अनुसार कार्य करता है।

पंडित केपी शर्मा के अनुसार इस दोष को समाप्त करने के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं। ऐसे में उन निश्चित दिनों व समय पर ही धार्मिक विधि से इसका पूर्ण निवारण किया जा सकता है।

यह निश्चित दिन श्राद्ध पक्ष के होते हैं, जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। जानकारों के अनुसार इसके निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।

ऐसे समझें नारायणबलि और नागबलि
मनुष्य की अधूरी इच्छाओं और अधूरी कामनाओं की पूर्ति के लिए नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि अपनाई जाती है। जिन्हें काम्य कहा जाता है।

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दरअसल यह दो अलग-अलग विधियां हैं। दनमें नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। माना जाता है इनमें से कोई भी केवल एक विधि से उद्देश्य पूरा नहीं होता, इसलिए दोनों को एक साथ ही करना होता है।

नारायणबलि पूजा का ये है कारण
जानकारों के अनुसार जिस परिवार में किसी सदस्य या पूर्वज का धर्मिक क्रियाओं के अनुसार अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ होता है, उनकी आगे आने वाली पीढि़यों में इसके प्रभाव से पितृदोष उत्पन्न हो जाता है।

पितृ दोष की उत्पत्ति होने से व्यक्ति का पूरा जीवन (जब तक वह इसका निवारण नहीं करा लेता) कष्टमय बना रहता है। जानकारों के अनुसार ऐसे में इससे मुक्ति के लिए ही पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान किया जाता है। दरअसल माना जाता है कि नारायणबलि प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए की जाती है।

इसके अलावा परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई होने या आत्महत्या, पानी में डूबने, आग में जलने या दुर्घटना में मृत्यु होने से भी ऐसा दोष उत्पन्न होता है।

पूजा करने का ये है कारण
हिंदू शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म का विधान है। ऐसे में यह कर्म कौन व किस प्रकार कर सकता है, इसकी पूरी जानकारी होना भी आवश्यक है।

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मान्यता के अनुसार यह कर्म हर वह व्यक्ति कर सकता है, जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। यहां तक की जिनके माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं। संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी के साथ करना चाहिए।

वहीं यदि पत्नी जीवित न हो तो पत्नी के बिना भी कुल के उद्धार के लिए यह कर्म किया जा सकता है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक ही यह कर्म किया जा सकता है।

IMAGE CREDIT: patrika

लेकिन ध्यान रहे घर में यदि कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं जाने चाहिए। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक इन कर्मों को निषिद्ध जाता है।

नारायणबलि-नागबलि कब है वर्जित?
मान्यता के अनुसार गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नारायणबलि कर्म को वर्जित माना गया है, जबकि प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिंधु के अनुसार नारायणबलि कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है।

ऐसे में इस कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक (धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है) और त्रिपाद नक्षत्र (कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं) को निषिद्ध माना गया है। इनके अलावा अन्य समय यह कर्म किया जा सकता है।