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वाल्मीकि की अयोध्या, तुलसीदास की अवधपुरी

रामायण और रामचरितमानस में किया गया है वैभव और भव्यता का चित्रण  

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वाल्मीकि की अयोध्या, तुलसीदास की अवधपुरी

वाल्मीकि की अयोध्या, तुलसीदास की अवधपुरी

अयोध्या.राम भारत के लोक हैं और उसकी मंगलकामना भी। राम घट-घटव्यापी ईश्वर है तो कौशल्यानंदन भी। राम अविनाशी हैं तो अयोध्यावासी भी। ऐसे प्रभु राम की कीर्ति ध्वजा दुनिया के कोने-कोने में ले जाने के लिए महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की। इन ग्रंथों के शब्दों से राम और रामनगरी अयोध्या करोड़ों लोगों के मन में आज भी जीवंत हो उठती है। अब अवधपुरी का फिर से शृंगार हुआ है। महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदास ने भी अपने शब्द शिल्प से अयोध्या का वर्णन किया। इस मौके पर जानते हैंं महर्षि वाल्मीकि की अयोध्या और तुलसीदास की अवधपुरी कैसी थी।

महर्षि वाल्मीकि ने लिखा...

कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्।...

अर्थात... सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों और पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कौसल (कोसल) नामक एक बड़ा देश था।

गृहगाढामविच्छिद्रां समभूमौ निवेशिताम् । शालितण्डुलसम्पूर्णामिक्षुकाण्डरसोदकाम् ।।

अर्थात...अयोध्या में चौरस भूमि पर सघन बस्ती थी। कुओं में गन्ने के रस जैसा मीठा जल भरा हुआ था। अयोध्या अपने जमाने की सर्वोत्तम नगरी थी और पूरी वसुंधरा में उसके समान कोई दूसरी नगरी नहीं थी।

यह भी महिमा- अयोध्या नामक महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इसमें सुंदर लंबे और चौड़े मार्ग थे। इन पर नित्य जल छिड़का जाता था। यहां के निवासियों के पास अतुल धन संपदा थी। इसमें बड़ी-बड़ी ऊंची अटारियों वाले मकान थे जो ध्वजा, पताकाओं से शोभित रहते थे। अयोध्या शहर में महिलाएं स्वतंत्र रूप से विचरण करती थीं, महिलाओं के कई नाट्य समूह थे। राजभवनों का रंग सुनहरा था और नगर में रूपवती और गुणवती स्त्रियां रहती थी।

गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा

तुलसीदास ने रामचरितमानस में अवधपुरी की महिमा का वर्णन राम के संदर्भ में किया है।

बंदउं अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।

अर्थात मैं अतिपवित्र अवधपुरी और कलियुग के पापों का नाश करनेवाली सरयू नदी की वंदना करता हूं।

राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि।

चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा।

अवधपुरी मोक्षदायिनी है, जो जीव इस नगरी में प्राण त्यागता है, उसे दोबारा संसार में आने की जरूरत नहीं पड़ती।

जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रंग रुचिर गच ढारीं।

पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर। रचे कंगूरा रंग रंग बर।

अर्थात यहां स्वर्ण और रत्नों से बनी अटारियां हैं, उनमें (मणि-रत्नों की) अनेक रंगों की सुंदर ढली हुई फर्शें हैं। नगर के चारों ओर अत्यंत सुंदर परकोटा बना है, जिस पर सुंदर रंग-बिरंगे कंगूरे बने हैं।