गुस्सा: विदुर जी के अनुसार इंसान के भीतर का क्रोध या गुस्सा उसका सबसे बड़ा दुश्मन होता है। जिन लोगों के पास ये होता है उनकी बुद्धि और विवेक काम नहीं करता। इंसान गुस्से में सही फैसले भी नहीं ले पाता जो उसकी तरक्की के रास्ते में रोड़ा बनता है। ऐसे लोग शारीरिक और मानसिक रूप से खुद भी दुखी रहते हैं और अपने आसपास के लोगों को भी खुश नहीं रख पाते।
काम: महात्मा विदुर के नीति शास्त्र में बताया गया है कि काम की भावना भी ऐसा दुर्गुण है जिससे ग्रसित मनुष्य अपने आपको आध्यात्मिक रूप से कमजोर कर लेता है। काम की भावना के चलते व्यक्ति के ऊपर हिंसक प्रवृत्ति और क्रोध जैसी बुराइयां हावी होने लगती हैं। जिससे व्यक्ति कोई भी गलत काम करने को तैयार हो जाता है और अपने हाथों अपनी ही ज़िंदगी तबाह कर लेता है।
लालच
लोभ या लालच जैसी बुराई जिस इंसान के भीतर होती है वह मनुष्य कभी जीवन में अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाता। लालची लोगों को कुछ भी मिल जाए उन्हें कभी संतुष्टि नहीं मिलती। लालच के कारण उन्हें हर किसी से ईर्ष्या होने लगती है और यही उनके दुख का कारण बन जात है।
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