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पितृ दिवस: शास्त्रों में इन पिताओं का है बड़ा महत्व, जीवन में सफलता के लिए अपनाएं इनकी ये सीख

व्यक्ति के जीवन में पिता का एक बहुत होता है। वहीं शास्त्रों में भी पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा बताया गया है। इसी प्रकार शास्त्रों में कुछ ऐसे पिता बताए गए हैं जिनकी सीख से जीवन...

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पितृ दिवस: शास्त्रों में इन पिताओं का है बड़ा महत्व, जीवन में सफलता के लिए अपनाएं इनकी ये सीख

भले ही आज के जमाने में फादर्स डे मनाने और पिता को तोहफे देने की परंपरा का एक अलग सा चलन हो गया है। लेकिन प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति में पिता को एक खास स्थान प्राप्त है। भारतीय संस्कृति के अनुसार 'पितृ दिवस' का मुख्य उद्देश्य पिता द्वारा संतान को पालने-पोसने और बच्चों की परवरिश के लिए उठाए गए कष्टों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। माना जाता है कि जो व्यक्ति माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए नैतिक दायित्वों का निर्वहन करता है उसे जीवन में खूब तरक्की हासिल होती है। इसी प्रकार महाभारत और रामायण जैसे कई शास्त्रों में कुछ ऐसे पिताओं का वर्णन मिलता है जिनकी सीख आज भी महत्वपूर्ण मानी जाती है...

राजा दशरथ
रामायण के अनुसार राजा दशरथ अपने पुत्र राम से बेहद प्रेम किया करते थे। वहीं जब कैकयी के हठ से दशरथ ने श्रीराम को वनवास भेज दिया तो उसके बाद राजा दशरथ काफी बीमार हो गए और अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सके। अंतिम समय में दशरथ और श्रवण कुमार के माता पिता द्वारा पुत्र वियोग का श्राप याद आया। अतः दशरथ पिता की पहली सीख यह है कि किसी भी व्यक्ति को बिना सोचे-समझे अन्य व्यक्ति से कोई वादा नहीं करना चाहिए और दूसरी सीख है कि हर किसी का भाग्य उसके अपने कर्मों से ही तय होता है।

अर्जुन
अभिमन्यु, अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र था। सुभद्रा के गर्भवती होने के दौरान अर्जुन अपनी पत्नी को चक्रव्यूह भेदने का रहस्य बता रहे थे, जिस गर्भ में अभिमन्यु भी सुन रहा था। लेकिन बीच में ही सुभद्रा को नींद आ गई। इस कारण चक्रव्यूह का पूरा रहस्य गर्भ में अभिमन्यु भी नहीं सुन पाया। तत्पश्चात महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु जब चक्रव्यूह में फंसा तो कौरवों ने उसे मार दिया क्योंकि उसे चक्रव्यूह से निकलने का रहस्य नहीं पता था। इसलिए इससे यह सीख मिलती है कि संतान को कभी भी अधूरा ज्ञान नहीं देना चाहिए क्योंकि अधूरा ज्ञान बहुत खतरनाक हो सकता है।

शिव जी
भोलेनाथ और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का पालन-पोषण माता-पिता से दूर एक वन में हुआ था। लेकिन जब भगवान शिव को कार्तिकी के बारे में पता चला तो उन्होंने कार्तिकी को कैलाश बुला लिया। उस वक्त तारकासुर नामक एक राक्षस जिससे सभी देवता परेशान थे, उसको यह वरदान प्राप्त था कि शिव जी का पुत्र ही उसका संहार करेगा। तब सभी देवतागण भगवान भोलेनाथ के पास यह प्रार्थना लेकर पहुंचे कि कार्तिकेय तारकासुर का वध कर दें। इसके बाद शिव शंभू ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके इतने समय बाद आए हुए अपने पुत्र कार्तिकेय को तारकासुर को मारने के लिए तुरंत भेज दिया। भगवान शिव की इस बात से यह सीख मिलती है कि समाज में जब भी हमारी संतान की जरूरत पड़े तो उसे रोकना नहीं चाहिए।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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