
pool where Holika was burnt
साल 2022 में 17 मार्च को 01:29 PM के बाद फाल्गुन पूर्णिमा यानि होलिका दहन का दिन है। ऐसे में आज हम आपको देश में मौजूद उस शहर व वहां मौजूद उस कुंड के बारे में बता रहे हैं, जिसे लेकर मान्यता है कि यहीं होलिका अपनी गोद में लेकर प्रह्लाद को बैठी थी और स्वयं ही अग्नि में जल गई थी।
दरअसल जानकारों के अनुसार वर्तमान मे यह स्थान उत्तर प्रदेश के हरदोई को माना जाता है कि आधुनिक होली का संबंध इसी शहर से है। जहां आज की हरदोई को उस काल में हिरण्यकश्यप की नगरी के नाम से जाना जाता था, यह वहीं स्थान है जहां हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानने लगा था। यहां ये जान लीजिए कि हरदोई नाम आखिर कैसे पड़ा माना जाता है कि हरि द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु या विरोध करने वाला और हिरण्यकश्यप भगवान को बिल्कुल नहीं मानता था। इसलिए हिरना कश्यप की राजधानी का नाम हरि द्रोही था, जो आज भी हरदोई नाम के शहर से जाना जाता है।
प्राचीन काल से ही ये मान्यता है कि इसी हिरण्यकश्यप की बहन होलिका हरदोई में ही जलकर राख हुई थी और जिसके बाद ही यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था। वहीं एक ओर जहां हिरणकश्यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था, वहीं उनका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। इसी कारण प्रह्लाद से उसका पिता हिरण्यकश्यप नाराज था, जिसके चलते हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे प्रहलाद को प्रताड़ित करने के लिए कभी उसे ऊंचे पहाड़ों से गिरवा दिया तो कभी जंगली जानवरों के बीच डाल दिया, लेकिन वह हर बार बचकर आ गया।
वहीं प्रहलाद इन तमाम तरह की प्रताडनाओं के बावजूद भगवान विष्णु की भक्ति से अलग नहीं हुए। ऐसे में जब हिरण्यकश्यप को कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया और प्रहलाद का वध करने की बात कही। आपका बता दें कि होलिका को आग में ना जलने का वरदान एक कपड़े के रूप में मिला था, जिसके तहत यदि होलिका उस कपड़े को धारण कर आग में बैठती थी तो उसे अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
इसी वरदान का लाभ उठने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका से प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने को कहा। ताकि अग्नि की तपिश से प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए, लेकिन इस पूरी स्थिति में भगवान की कृपा से उल्टा ही हो गया, यानि अग्नि से प्रह्लाद तो सुरक्षित आ गया, लेकिन होलिका आग में जल गई।
दरअसल जब होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्निकुंड में बैठी तो उसी दौरान भगवान की कृपा से तेज हवा चली जिससे होलिका को मिले वरदान के कपड़े ने उसे हट कर प्रह्लाद का लपेट लिया, ऐसे में होलिका अग्नि के तेज को सह नहीं सकी और जल गई, जबकि उस कपड़े ने प्रह्लाद को बचा लिया।
ज्ञात हो कि हरदोई में आज भी माना जाता है कि यह कुंड मौजूद है जहां होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी थी। होलिका की जलने के बाद भगवान विष्णु ने नृसिंह का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया। होलिका के जलने के बाद लोगों ने यहां उत्सव मनाया और वर्तमान में खुशी के चलते गुलाल उड़ाने की परंपरा की यहीं से शुरूआत हुई।
Published on:
17 Mar 2022 01:13 pm
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