scriptGangaur Teej 2022: आखिर क्यों रखा जाता है गणगौर व्रत, जानिए इसके पीछे की कहानी और सम्पूर्ण पूजा विधि | Know The Story Behind The Gangaur Fast And The Puja Vidhi | Patrika News

Gangaur Teej 2022: आखिर क्यों रखा जाता है गणगौर व्रत, जानिए इसके पीछे की कहानी और सम्पूर्ण पूजा विधि

locationनई दिल्लीPublished: Apr 03, 2022 04:28:00 pm

Submitted by:

Tanya Paliwal

Gangaur Teej 2022: यह व्रत पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए रखती हैं। तो अब आइए जानते हैं गणगौर व्रत से जुड़ी कहानी और पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां….
 

गणगौर व्रत, गणगौर पूजा विधि, गणगौर की कहानी, शिव-पार्वती, Gangaur vrat 2022, gangaur vrat date, gangaur vrat puja vidhi, gangaur puja story,

Gangaur Teej 2022: आखिर क्यों रखा जाता है गणगौर व्रत, जानिए इसके पीछे की कहानी और सम्पूर्ण पूजा विधि

भारत में मनाए जाने वाले कई त्योहारों में से एक गणगौर भी काफी प्रसिद्ध है। खासतौर पर राजस्थान में गणगौर व्रत बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गणगौर में ’गण’ भगवान भोलेनाथ और गौर शब्द माता पार्वती के लिए प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर चैत्र पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार आस्था और प्रेम का बोधक है। इस साल ये त्योहार 4 अप्रैल को मनाया जायगा। यह व्रत पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए रखती हैं। तो अब आइए जानते हैं गणगौर व्रत से जुड़ी कहानी और पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां….

क्या है गणगौर व्रत की पीछे की कहानी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब पार्वती मां ने भगवान भोलेनाथ को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप और साधना के साथ व्रत रखा था, तब भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती को दर्शन दिए। माता पार्वती के समक्ष प्रकट होकर भगवान शिव ने उनसे वर मांगने को कहा।

तब माता पार्वती ने वरदान में भगवान शिव को ही अपने पति के रुप में मांग लिया। उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हो गया। साथ ही भगवान शिव ने माता पार्वती को अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान भी दिया।

भगवान शिव से मिले इस वरदान को माता पार्वती ने अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि उन्होंने कहा कि यह वरदान उन सभी महिलाओं के लिए भी है जो इस दिन मां पार्वती और भगवान शंकर की पूजा पूरे विधि-विधान से कर रही थीं। तभी से गणगौर व्रत सभी जगह प्रसिद्ध हो गया और आज सभी कुंवारी कन्याएं तथा महिलाएं इसे बड़ी श्रद्धा और प्रेम से करती हैं।

 

गणगौर व्रत विधि

गणगौर व्रत के दिन कुंवारी कन्याएं और महिलाएं सुबह सोलह श्रृंगार करके बाग-बगीचों से हरी दूब और फूल मिला हुआ पानी लोटों में भरकर उन्हें अपने सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुईं घर आती हैं।

इसके बाद लकड़ी के पट्टे पर कपड़ा बिछाकर उस पर ईसर और पार्वती की मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा स्थापित की जाती है। ईसर और पार्वती को रंग-बिरंगे वस्त्र पहनाकर हल्दी, मेहंदी, रोली, काजल आदि से गणगौर के गीत गाते हुए उनका पूजन किया जाता है।

 

इसके पश्चात दीवार पर मेहंदी, काजल, रोली, महावर की 16-16 बिंदिया महिलाओं द्वारा और 8-8 बिंदिया कुंवारी कन्याओं द्वारा लगाई जाती हैं। साथ ही एक खाली थाली में पनी, दूध, दही, हल्दी और कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है।

उसके बाद अपने दोनों हाथों में हरी दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर छींटे मारती हैं। इन छींटों को सुहाग का प्रतीक माना जाता है।

पूजा के अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है और फिर महिलाएं अपनी सासू मां को बायना देकर पैर छूती हैं। इसके बाद शाम के समय शुभ मुहूर्त में ईसर और पार्वती को पानी पिलाकर किसी पवित्र कुंड में विसर्जित कर दिया जाता है। यह बात भी ध्यान रखें कि इस पूजा का प्रसाद केवल स्त्रियां और कन्याएं ही खाएं, पुरुषों को न दें।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो