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मई में किस दिन रखा जाएगा प्रदोष व्रत, साथ ही जानें शिव को समर्पित इस व्रत की कथा और महत्व

  Pradosh Vrat May 2022: शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि जो व्यक्ति संपूर्ण श्रद्धा और नियम से भगवान भोलेनाथ के इस व्रत को करता है, शिवशंभु खुश होकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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मई में किस दिन रखा जाएगा प्रदोष व्रत, साथ ही जानें शिव को समर्पित इस व्रत की कथा और महत्व

Pradosh Fast 2022 Date, Story And Significance: हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है जो कि भगवान शिव को समर्पित होता है। मई के महीने में प्रदोष व्रत 13 मई 2022 को शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि जो व्यक्ति संपूर्ण श्रद्धा और नियम से भगवान भोलेनाथ के इस व्रत को करता है, शिवशंभु खुश होकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। अब आइए जानते हैं क्या है इस व्रत के पीछे की कहानी और महत्व...

प्रदोष व्रत कथा-
स्कंद पुराण के अनुसार, प्राचीन समय में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ प्रतिदिन भिक्षा मांगने के लिए सुबह की निकलती और शाम को वापस लौट कर आती। रोजाना की तरह वह एक दिन जब दीक्षा लेकर लौट रही थी तो उसने नदी के पास एक बहुत ही सुंदर बालक को देखा। उस ब्राह्मणी को यह नहीं पता था कि वह धर्मगुप्त नामक बालक विधर्भ देश का राजकुमार था जिसके पिता को शत्रुओं ने युद्ध के दौरान मार डाला था और उनका राज्य भी हथिया लिया था। धर्मगुप्त की माता भी अपने पति यानी विधर्भ देश के राजा की मृत्यु के दुख में चल बसी थीं।

अकेले बालक की दशा देखकर उस विधवा ब्राह्मणी ने अपने बेटे की तरह ही धर्मगुप्त का भी पालन-पोषण किया। थोड़े दिनों के बाद वह ब्राह्मणी अपने पुत्र और धर्मगुप्त के साथ देव मंदिर गई जहां वह ऋषि शांडिल्य से मिली। ऋषि शांडिल्य अपने बुद्धि और विवेक के लिए चर्चित थे। तब ऋषि शांडिल्य ने ही विधवा ब्राह्मणी को धर्मगुप्त के माता-पिता की मृत्यु से जुड़ी कहानी बताई।

इसके बाद ऋषि शांडिल्य ने उस ब्राह्मणी और दोनों बच्चों को प्रदोष व्रत के बारे में विस्तार से समझाया।ऋषि शांडिल्य से संपूर्ण विधि-विधान को सुनने के बाद उस ब्राह्मणी और दोनों बच्चों ने व्रत संपन्न किया लेकिन उन्हें इस व्रत के फल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कुछ दिन बाद जब दोनों बालक वन में घूम रहे थे तब उन्होंने वहां बेहद खूबसूरत गंधर्व कन्याओं को देखा।

उन गंधर्व कन्याओं में से एक अंशुमती नाम की कन्या पर राजकुमार धर्मगुप्त का दिल आ गया और कुछ समय बाद अंशुमती और धर्मगुप्त एक दूसरे के प्यार में पड़ गए। तब अंशुमती ने शादी की इच्छा के कारण धर्मगुप्त को अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। इसके बाद जब अंशुमती के पिता को यह बात पता चली कि धर्मगुप्त विदर्भ देश का राजकुमार है तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ की आज्ञा से उन दोनों की शादी करवा दी। शादी के बाद धर्मगुप्त ने दोबारा संघर्ष करके अपनी सेना बनाई और राज्य पर अपना आधिपत्य प्राप्त कर लिया।

कुछ समय के बाद धर्मगुप्त को ज्ञात हुआ कि उन्हें यह सब प्रदोष व्रत के फलस्वरूप ही मिला है। उनकी सच्ची श्रद्धा और व्रत से खुश होकर भगवान भोलेनाथ में उन्हें ये फल दिया। तब से यह मान्यता है कि जो कोई भी प्रदोष व्रत के दिन विधि-विधान से भोलेनाथ की पूजा करेगा। साथ ही ये कथा पढ़ेगा या सुनेगा, उसे अगले 100 वर्षों तक सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।

प्रदोष व्रत का महत्व: माना जाता है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा करने और व्रत कथा पढ़ने से व्यक्ति को समृद्धि, प्रसिद्धि, शत्रुओं पर विजय और संतान सुख मिलता है। इस दिन भोलेनाथ पर सफेद चंदन, भांग, धतूरा, गाय का दूध और गंगाजल अर्पित करना शुभ होता है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लें।)

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