
सावन में कांवड़ यात्रा का महत्व, जानें कौन था पहला कांवड़िया
17 जुलाई से सावन माह ( month of sawan ) की शुरुआत हो रही है। इसके बाद श्रद्धालु कांवड़ यात्रा ( Kanwar Yatra ) के लिए घर से निकलेंगे और शिव के जयकारों से गली-मोहल्ले गूंजने लगेंगे। अगर आप भी कांवड़ यात्रा की योजना बना रहे हैं तो कांवड़ यात्रा से जुड़ी कुछ बातें आपको जानना जरूरी है।
क्या है कांवड़ यात्रा
किसी पावन जगह से कंधे पर गंगाजल लाकर भगवान शिव ( Lord Shiva ) के ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा कांवड़ यात्रा कहलाती है। सावन मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा को सहज मार्ग माना जाता है। कहा जाता है इस महीने में भगवान शिव और भक्तों के बीच की दूरी कम हो जाती है।
कौन था पहला कांवड़ियां
बताया जाता है कि रावण पहला कांवड़िया था। भगवान राम भी कांवड़िया बनकर सुल्तानगंज से जल लेकर देवधर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया था। इस बात का उल्ले आनंद रामायण में भी मिलता है।
कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड यात्रा के कई नियम हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान नशा, मांस, मदिरा और तामसिक भोजन वर्जित रहता है। इसके अलाना बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगा सकते है।
अश्वमेघ यज्ञ के बराबर मिलता है फल
कहा जाता है कि जो भी सावन महीने में कांधे पर कांवड़ रखकर बोल-बम का नारा लगाते हुए पैदल यात्रा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि उसे मृत्यु के बाद उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।
कांवड़ के प्रकार
Updated on:
07 Jul 2019 01:51 pm
Published on:
07 Jul 2019 01:48 pm
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