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कुंडली के वे योग, जो बर्बाद कर देते हैं जीवन, देखें कहीं आपकी कुंडली में तो नहीं

locationभोपालPublished: Nov 23, 2020 05:05:34 pm

जन्मकुंडली में होते हैं शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग…

shubh ashubh yog in your janmkundli

shubh ashubh yog in your janmkundli

ज्योतिष में किसी भी जातक की स्थिति को सबसे सटिक उसकी जन्मकुंडली के आधार पर समझा जाता है। कारण यह है हिक कुंडली वह पत्री है जिसमें आपके जन्म के समय ग्रह-नक्षत्रों और राशियों की स्थिति का वर्णन होता है। जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है।

जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों योग के माध्यम से व्यक्ति के भाग्य का विश्लेषण किया जा सकता है। कुंडली में ग्रहों की युति या उनकी स्थितियों से योगों का निर्माण होता है। ये योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार जो योग शुभ होते हैं उनसे जातकों को अच्छे फल प्राप्त होते है। इन्हें राज योग कहते हैं। वहीं इसके विपरीत जो योग अशुभ होते हैं, उनके कारण व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां आती हैं। ऐसे में हम आज आपको कुंडली में बनने वाले कुछ ऐसे योग बता रहे हैं जिनके संबंध में मान्यता हैं कि ये जातक के लिए परेशानी का कारण बनते हैं।

1. ग्रहण योग :
कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र के साथ राहु या केतु बैठे हों तो ग्रहण योग बनता है। यदि इस ग्रह स्थिति में सूर्य भी जुड़ जाए तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है। यानि उसका मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता। उसके द्वारा किए गए कार्य में बार-बार बदलाव होता है। साथ ही उसे बार-बार नौकरी और शहर भी बदलना पड़ता है। कई बार देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति को पागलपन के दौरे तक पड़ जाते हैं।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : ग्रहण योग का प्रभाव कम करने के लिए सूर्य और चंद्र की आराधना लाभ देती है। आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के नियमित दर्शन करें।

2. चांडाल योग
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु बृहस्पति के साथ राहु बैठा हो तो, दोनों की युति से कुंडली में चांडाल योग बनता है। चांडाल योग से व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है। चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी पड़ता है।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : चांडाल योग की निवृत्ति के लिए गुरुवार को पीली दालों का दान किसी जरूरतमंद को करें। इस योग की शांति के लिए गुरु बृहस्पति की शांति के उपाय करने चाहिए। गुरुवार के दिन पीली चीजों का दान करना इस योग का एक निवारण है। पीली मिठाई का भोग गणेशजी को लगाएं। स्वयं संभव हो तो गुरुवार का व्रत करें। एक समय भोजन करें और भोजन में पहली वस्तु बेसन की उपयोग करें।

3. षड्यंत्र योग
लग्न भाव का स्वामी (लग्नेश) अगर अष्टम भाव में बिना किसी शुभ ग्रह के हो तो कुंडली में षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है उसकी धन-संपत्ति नष्ट होने की आशंका रहती है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। धोखे से उसका धन-संपत्ति छीनी जा सकती है। इस योग के चलते कोई विपरीत लिंगी जातक भी इन्हें भारी मुसीबत में डाल सकता है।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : इस दोष की निवृत्ति के लिए शिव परिवार का पूजन करें। सोमवार को शिवलिंग पर सफेद आंकड़े का पुष्प और सात बिल्व पत्र चढ़ाएं। शिवजी को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।

4. भाव नाश योग :
जन्मकुंडली में जब किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : जिस ग्रह को लेकर भावनाशक योग बन रहा है, उससे संबंधित वार को हनुमानजी की पूजा करें। इसके अलावा किसी जानकार की सलाह पर ही उस ग्रह से संबधित रत्न धारण करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।

5. अल्पायु योग :
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा पापी या क्रूर ग्रहों के साथ त्रिक स्थान (छठे, आठवें, बारहवें भाव) पर बैठा हो तो यह स्थिति कुंडली में अल्पायु योग का निर्माण करती है। जिस कुंडली में यह योग होता है, उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है। उसकी आयु कम होती है।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : कुंडली में बने अल्पायु योग की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज जपें। बुरे कार्यों से दूर रहें। दान-पुण्य करते रहें।

6. कुज योग :
मंगल जब लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है। इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : मंगलदोष की समाप्ति के लिए पीपल और वटवृक्ष में नियमित जल अर्पित करें। लाल तिकोना मूंगा तांबे में धारण करें। मंगल के जाप करवाएं या मंगलदोष निवारण पूजन करवाएं।

7. विष योग
जन्म कुंडली में विष योग का निर्माण शनि और चंद्रमा की युति से होता है। इस योग के चलते व्यक्ति का जीवन नर्क के समान हो जाता है।

यह योग जातक के लिए बेहद कष्टकारी माना जाता है। नवग्रहों में शनि को सबसे मंद गति के लिए जाना जाता है और चंद्र अपनी तीव्रता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन शनि अधिक पॉवरफुल होने के कारण चंद्र को दबाता है। इस तरह यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के किसी स्थान में शनि और चंद्र साथ में आ जाए तो विष योग बन जाता है।

इसका दुष्प्रभाव तब अधिक होता है जब आपस में इन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो। विष योग के प्रभाव से व्यक्ति जीवनभर अशक्तता में रहता है। मानसिक रोगों, भ्रम, भय, अनेक प्रकार के रोगों और दुखी दांपत्य जीवन से जूझता रहता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके अनुसार अशुभ फल जातक को मिलते हैं।

दुष्परिणाम से बचने के उपाय : जिस जातक की कुंडली में या राशि में विष योग बना हो वे शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे नारियल फोड़ें। या हनुमानजी की आराधना से विष योग में बचाव होता है।

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