
Skand Shashthi
Curse To Kartikey: एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती ने चौपड़ खेलना शुरू किया। इस खेल में भगवान शिव सब कुछ हार गए। इसके बाद महादेव ने एक लीला शुरू कर दी, वे माता पार्वती से नाराज होकर पत्तों के वस्त्र पहनकर गंगा तट की ओर चले गए। कार्तिकेय को यह बात पता चली तो वो माता पार्वती से शंकरजी की हारी हुई चीजें लेने आए। इस बार खेल में माता पार्वती हार गईं और कार्तिकेय सारी चीजें लेकर चले गए।
अब माता पार्वती चिंतित हो गईं, वे इस सोच में पड़ गईं कि सामान भी चला गया और पति भी दूर चला गया। उनकी व्यथा सुनकर गणेशजी शंकरजी से सामान लाने पहुंच गए। उन्होंने शंकरजी को चौपड़ में हराया और सब सामान लेकर लौट आए। साथ ही माता को सारा हाल बताया। इस पर उन्होंने कहा कि उन्हें पिता को साथ लाना चाहिए था।
इस पर गणेशजी पिता की खोज में निकल पड़े। मातृ भक्त गणेश को पिता महादेव हरिद्वार में मिले, यहां भगवान भोलेनाथ, भगवान विष्णु और कार्तिकेय के साथ थे। पार्वती से नाराज भगवान शिव ने लौटने से मना कर दिया। इधर, भोलेनाथ के भक्त रावण ने बिल्ली बनकर गणेश के वाहन मूषक को डराकर भगा दिया। मूषक गणेशजी को छोड़कर भाग गए।
वहीं भगवान विष्णु महादेव की इच्छा से पासा बन गए। इस बीच जब गणेश ने माता के उदास होने की बात सुनाई और साथ चलने का आग्रह किया तो महादेव ने कहा कि मैंने नया पासा बनवाया है अगर तुम्हारी मां फिर से चौपड़ खेलने पर सहमत हो तो वे चल सकते हैं। गणेशजी के आश्वासन पर भोलेनाथ पार्वती के पास पहुंचे, और खेलने के लिए कहा। इस पर माता पार्वती हंस पड़ी, उन्होंने कहा कि पास क्या चीज है, जिससे खेल खेला जाय। यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए।
यह स्थिति देखकर नारदजी ने महादेव को अपनी वीणा आदि सामग्री दे दी। अब खेल में महादेव जीतने लगे, लेकिन गणेशजी पूरा खेल समझ गए। उन्होंने माता पार्वती को विष्णुजी के पासा का रूप धारण करने का रहस्य बता दिया। फिर तो माता पार्वती क्रुद्ध हो गईं। रावण ने समझाने का प्रयास किया, लेकिन वो माता के क्रोध का शमन करने में नाकाम रहे। आखिरकार माता ने सभी को शाप दे दिया। उन्होंने भगवान शंकर को शाप दिया कि गंगा की धारा का बोझ उन पर रहेगा, नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिशाप दिया।
कथा के अनुसार भगवान विष्णु को शाप दिया कि रावण उनका शत्रु बनेगा और रावण को शाप दिया की नारायण उसका नाश करेंगे। वहीं कार्तिकेय को कभी जवान न होने का शाप दे दिया।
शाप के बाद वरदानः इस अभिशाप से सभी चिंतित हो उठे, नारदजी ने विनोदपूर्ण बातों से माता पार्वती का क्रोध शांत किया तो माता ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर नारदजी ने कहा कि आप सभी को एक-एक वरदान देंगी तभी वे वरदान मांगेंगे। माता सहमत हो गईं। इस पर शंकरजी ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले व्यक्ति को वर्षभर विजयी बनाने का वरदान मांगा।
भगवान विष्णु ने हर छोटे बड़े काम में सफलता, कार्तिकेय ने सदा बालक रहने का वर मांगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विषय वासना मेरे करीब भी न आए, सदा भगवान के ध्यान में लीन रहूं। नारदजी ने देवर्षि होने का वर मांगा। माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों का सुविस्तृत व्याख्या करने का वरदान दिया।
Updated on:
16 Feb 2023 07:30 pm
Published on:
16 Feb 2023 07:26 pm
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