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क्या है ब्रह्मास्त्र? जानिए इससे जुड़े कुछ खास रहस्य!

Brahmastra: ब्रह्मास्त्र यानी भगवान ब्रह्मा का अस्त्र जिसकी उत्पत्ति स्वयं जगतपिता ब्रह्मा जी ने असुरों के विनाश के लिए की थी। इस संहारक अस्त्र का कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।

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क्या है ब्रह्मास्त्र? जानिए इससे जुड़े कुछ खास रहस्य!

प्राचीन समय में देवी-देवताओं द्वारा असुरों के विनाश के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अस्त्रों की शक्ति का हमारे पुराणों तथा ग्रंथों में कई जगह वर्णन मिलता है। नहीं माना जाता है कि सभी दिव्य अस्त्रों में भगवान ब्रह्मा द्वारा निर्मित ब्रह्मास्त्र सबसे शक्तिशाली था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस शक्तिशाली और संहारक अस्त्र को प्राप्त करने वाले को ब्रह्मा जी को खुश करने के लिए बेहद कठिन तपस्या करनी पड़ती थी। इस कारण हर किसी के लिए ब्रह्मास्त्र को हासिल करना संभव नहीं था। तो आइए जानते हैं कि कैसे हुई विनाशकारी अस्त्र की उत्पत्ति और इससे जुड़ी कुछ खास बातें...

कैसी हुई ब्रह्मास्त्र की रचना?
जगतपिता कहे जाने वाले भगवान ब्रह्मा जिन्होंने इस सृष्टि का निर्माण किया था, ब्रह्मास्त्र को उन्हीं के द्वारा बनाया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों ने जब देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर आधिपत्य जमा लिया था तब ब्रह्मा जी ने स्वयं धर्म की रक्षा के लिए इस शक्तिशाली अस्त्र का निर्माण किया।

कितना शक्तिशाली था ये अस्त्र?
शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि ब्रह्मा जी का यह अस्त्र सबसे विनाशक था। कहा जाता है कि यदि युद्ध के दौरान दो ब्रह्मास्त्र आपस में एक दूसरे से टकरा जाएं तो यह प्रलय उत्पन्न कर सकते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मास्त्र जिस पर भी छोड़ा जाता था उस लक्ष्य का नामोनिशान नहीं बच पाता था। वहीं इससे उत्पन्न भयंकर अग्नि के कारण उसके आसपास मौजूद कोई भी प्राणी नहीं बच सकता था और उस स्थान पर दरारें पड़ जाती थीं। ब्रह्मास्त्र की शक्ति इतनी थी कि लक्ष्य को भेदने के बाद वहां कई वर्षों तक पुनः जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

वहीं पौराणिक कथानुसार वर्णन मिलता है कि धमाका सबसे पहला प्रयोग राजा विश्वामित्र में महर्षि वशिष्ठ पर किया था। हालांकि महर्षि वशिष्ठ के तेज के कारण ब्रह्मास्त्र का असर उन पर नहीं हुआ और वशिष्ठ के ब्रह्मदंड ने ब्रह्मास्त्र को निगल लिया। वहीं कहा जाता है कि अपने गुरु द्रोणाचार्य से अर्जुन को भी ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति हुई थी। यह विनाशकारी हथियार द्रोणाचार्य ने केवल अपने तीन योग्य शिष्यों अर्जुन, अश्वत्थामा और युधिष्ठिर को दिया था।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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