
kharmas aur malmas me antar: खरमास और मलमास में अंतर क्या होता है
Saur Varsh Chandra Varsh Kya Hota Hai: हिंदू काल गणना सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्रों की मूवमेंट पर आधारित होती है। सूर्य की गणना पर आधारित हर महीने को चंद्र मास, चंद्रमा की गति पर आधारित कैलेंडर को चंद्रमास और नक्षत्रों की गणना पर नक्षत्रमास गिना जाता है।
सभी के आधार पर तीज त्योहार फिक्स होते हैं। विशेष रूप से चंद्रमास पर तो प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय से आइये जानते हैं खरमास और मलमास में अंतर (Kharmas Aur Malmas Me Antar)
हिंदू धर्म दर्शन के अनुसार जड़-चेतन गुण दोष मय यानी हर चीज के कुछ न कुछ गुण-दोष होते हैं। इसी आधार पर ज्योतिष शास्त्र में शुभ अशुभ काल का निर्धारण किया जाता है।
ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार खरमास और मलमास दोनों पूरी तरह से अलग है। लेकिन कुछ लोग इसे समझने की भूल कर बैठते हैं। हालांकि दोनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं और दोनों में पूजा पाठ पर कोई निषेध नहीं है। आइये जानते हैं खरमास और मलमास में क्या अंतर है। इससे पहले आइये जानते हैं सौरवर्ष और चंद्र वर्ष में अंतर
आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार खरमास हिंदू कैलेंडर के हर साल में दो बार आता है। एक जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं और दूसरा सूर्य मीन राशि में गोचर करते हैं। ये दोनों राशियां गुरु की राशि होती हैं। इसी अवधि को खरमास कहते हैं।
खरमास में सूर्य के गोचर से गुर्वादित्य योग बनता है। इसे शुभ काम के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इसलिए मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।
मान्यता है कि सूर्य के गुरु की राशि में गोचर से सूर्य और गुरु की शुभ फल देने की शक्ति मद्धम पड़ जाती है और शुभ फल नहीं मिलता है। हिंदू मायथोलॉजी और मार्कण्डेय पुराण के अनुसार इन महीनों में सूर्य का रथ खर (गर्दभ) खींचते हैं, इससे उनका तेज धीमा पड़ जाता है। इसी कारण इस महीने को खरमास कहा जाता है।
हिन्दू पंचाग के अनुसार एक सौर वर्ष में 365 दिन 15 घटी 31 पल और 30 विपल होते हैं जबकि चंद्र वर्ष में 354 दिन 22 घटी 1 पल और 23 विपल होते हैं। सूर्य और चंद्र वर्षों में 10 दिन 53 घटी 30 पल और 7 विपल का अंतर रहता है। इसीलिए हर 3 वर्ष में चंद्र वर्ष में 1 माह का अंतर हो जाता है।
इस कारण समन्वय के लिए हिंदू पंचांग में हर तीसरे वर्ष एक माह जोड़ दिया जाता है और इस साल 12 के स्थान पर 13 महीने हो जाते हैं। इसी बढ़े हुए माह को ही अधिक मास कहते हैं। पंचांग के अनुसार अधिक मास के माह का निर्णय सूर्य संक्रांति के आधार पर किया जाता है। जिस माह सूर्य संक्रांति नहीं होती वह मास अधिक मास कहलाता है।
ये भी पढ़ेंः
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर तीसरे साल सौरवर्ष कैलेंडर और चंद्र वर्ष कैलेंडर में एक चंद्र माह के अंतर को समन्वित करने के लिए हिंदू कैलेंडर में जो एक माह बढ़ाया जाता है। इसी को अधिक मास या मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस महीने के अधिपति भगवान विष्णु हैं।
लेकिन ज्योतिषियों का मानना है कि मलमास भी दो तरह के होते हैं। एक मलमास या अधिकमास और दूसरा क्षयमास, जब चंद्रमास में एक भी संक्रांति नहीं होती तो इसे अधिकमास और जब एक चंद्रमास में दो संक्रांति हो जाती है तो इस मलमास को क्षयमास कहते हैं। एक प्राचीन कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह काल चक्र के 12 माह में किसी में भी मारा नहीं जाएगा। इसलिए भगवान ने इस महीने की रचना की थी।
एक मान्यता के अनुसार पुरुषोत्तम मास को मलमास नहीं कहना चाहिए वर्ना पुण्यों का नाश हो जाता है। ऐसा अधिकमास द्वारा भगवान विष्णु से मांगे वरदान के कारण होता है।
Kharmas Malmas Similarity: खरमास और मलमास में कुछ समानताएं भी हैं। दोनों महीने में शुभ और मांगलिक कार्य पर रोक रहती है। लेकिन जप तप साधना के लिए दोनों महीने महत्वपूर्ण होते हैं। खरमास और मलमास दोनों ही महीनों में भगवान सूर्य और विष्णु की विशेष पूजा का विधान है।
Published on:
18 Mar 2025 04:52 pm
बड़ी खबरें
View Allधार्मिक तथ्य
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
