। जीते जी रक्तदान, मरने के बाद नेत्रदान... ये सूत्र वाक्य चरितार्थ कर गई हैं मीरा आहूजा। जिनके नेत्रों से दो नेत्रहीन पहली बार दुनिया देखेंगे। शहर के व्यवसायी इंद्रलाल आहूजा की पत्नी 6 6 वर्षीय मीरा आहुजा ने मंगलवार सुबह 9.30 बजे अंतिम सांस ली। उनकी तमन्ना थी कि मरणोपरांत उनके नेत्र दान कर दिए जाएं। उनकी इस इच्छा को परिजनों ने पूरा किया। मृत्यु पश्चात मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग को सूचना दी गई। विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन के निर्देश पर डॉ. चारू चालीसगांकर की टीम चिरुहुला कॉलोनी स्थित उनके आवास पहुंची। दोपहर करीब 2 बजे यह टीम कार्निया संग्रहित कर गांधी स्मारक अस्पताल आयी। जिसके बाद जरूरतमंदों से संपर्क कर उन्हें बुलाया गया। जांच परीक्षण के बाद दो नेत्रहीन उपयुक्त पाए गए। जिनको देर रात नेत्र रोग विभाग के ऑपरेशन थियेटर में डॉक्टरों की टीम ने कार्नियां ट्रांसप्लांट कर दिया गया है।
डॉ. शशि जैन ने बताया कि कार्निया का ट्रांसप्लांट एक 52 वर्षीय महिला को किया गया है। जिसकी दोनों पुतलियों में खराबी थी। दोनों आंखों से देख नहीं सकती थी। जबकि दूसरी कार्निया का ट्रांसप्लांट के लिए जरूरतमंद देर रात अस्पताल पहुंचेगेें।
खुशी फाउंडेशन ने निभाई अहम भूमिका
नेत्रदान में खुशी फाउंडेशन ने अहम भूमिका निभाई है। सुबह जैसे ही फाउंडेशन के मुख्य कमलेश सचदेवा को मीरा आहुजा की मृत्यु की सूचना मिली वह उनके घर जा पहुंचे और परिजनों को नेत्रदान के संकल्प को पूरा करने के लिए प्रेरित किया। फाउंडेशन की प्रेरणा से ही परिजन आगे आए और नेत्रदान का संकल्प निभाया।
चार माह के भीतर दूसरा नेत्र प्रत्यारोपण
गांधी स्मारक अस्पताल में नेत्र बैंक खुलने के बाद यह दूसरा नेत्र प्रत्यारोपण किया गया है। पहला नेत्र प्रत्यारोपण चार माह पहले हुआ था। जब बोदाबाग निवासी भगनानी देवी का मरणोपरांत नेत्रदान किया था। विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने कहा कि लोग जागरूक हो रहे हैं। भविष्य के लिए यह शुभ संकेत है। विभाग की कोशिश इसे निरंतर बनाए रखने की है।
आंखों में जिंदा रहेगी मां की अनुभूति
मीरा आहुजा अपने पीछे हरा-भरा परिवार छोड़ गई हैं। पांच बेटे और एक बेटी है। ज्यादातर परिवारीजन व्यवसाय से ही जुड़े हंै। उनके बेटों ने कहा कि नेत्रदान करने का संकल्प पूरा किया है। दो जरूरतमंद जहां दुनिया देख सकेंगे वहीं उनकी मां की अनुभूति आंखों में जिदंा रहेगी।जिसे वे हमेशा महसूस करेंगे।