
Rewa Madhya Pradesh, congress list
रीवा। भाजपा के बाद कांग्रेस ने भी रीवा-मऊगंज जिले की चार सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। प्रदेश में पार्टी ने 144 नामों की सूची जारी की है जिसमें सर्वे में आए नामों को प्राथमिकता मिली है। कई सीटों पर प्रमुख दावेदारों को निराशा हाथ लगी है। जिन प्रत्याशियों के नाम घोषित हुए सुबह जैसे ही सूची सामने आई उनके समर्थकों ने खुशी जाहिर की है।
वहीं जिनके नाम कटे हैं उनके समर्थकों का दर्द सोशल मीडिया के जरिए सामने आया है। अभी खुलकर किसी दावेदार ने पार्टी के निर्णय पर बगावत नहीं किया है लेकिन माना जा रहा है कि कई दावेदार बगावत करेंगे। मऊगंज, त्योंथर, गुढ़ और मनगवां की सीटों से प्रत्याशी घोषित हुए हैं। वहीं रीवा, सिरमौर, देवतालाब और सेमरिया की घोषणा होल्ड पर है। इन स्थानों पर भी जल्द ही नाम सामने आएंगे। जिन नामों की घोषणा हुई है उसमें तीन पिछले चुनाव में भी पार्टी के प्रत्याशी थे।
वहीं गुढ़ से कपिध्वज सिंह सपा से लड़े थे और दूसरे नंबर थे। सर्वे के आधार पर उनका भी नाम तय हुआ है।
टिकट की घोषणा होने के बाद सुखेन्द्र सिंह बन्ना ने बोदाबाग स्थित घर के पास हनुमान मंदिर में दर्शन कर मऊगंज की ओर प्रस्थान किया। वहीं गुढ़ के कपिध्वज सिंह ने मंदिर में दर्शन के बाद बबिता साकेत के साथ कलेक्ट्रेट पहुंचकर भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर क्षेत्र के लिए रवाना हुए। रमाशंकर सुबह से ही त्योंथर क्षेत्र में सक्रिय रहे।
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गुढ़ : दो चुनावों के प्रदर्शन पर कांग्रेस ने दिया मौका
गुढ़ विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस पार्टी ने कपिध्वज सिंह को मैदान में उतारा है। पिछले दो चुनावों में लगातार उन्होंने अपनी स्थिति को मजबूत की है। इन्होंने वर्ष 2013 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। जिसमें 25510 वोट हासिल कर कई नेताओं के समीकरण ही बदल दिए। इसके बाद वह लगातार सक्रिय रहे और पिछले चुनाव 2018 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर थे। चुनाव के कुछ समय बाद ही कांग्रेस प्रत्याशी रहे सुंदरलाल तिवारी का निधन हो गया, तब से कांग्रेस को नए चेहरे की तलाश थी। इसी दौरान कपिध्वज सिंह ने कांग्रेस ज्वाइन किया और क्षेत्र में सक्रिय रहे। पार्टी के सभी सर्वे में वह पहली पसंद रहे। इस कारण पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है।
- क्षेत्रीय बनाम बाहरी के अभियान से लोगों को जोड़ा
कपिध्वज सिंह ने दस वर्ष पहले जब पहला चुनाव लड़ा तो उन्होंने यही अभियान चलाया कि गुढ़ में दूसरे क्षेत्रों के लोग चुनाव लडऩे आते हैं और जीतने के बाद क्षेत्र की अनदेखी करते हैं। इस कारण अब क्षेत्र को अपने बीच से नेता चुनना होगा। इसी का असर रहा कि जहां पहले चुनाव में लोग हल्के में ले रहे थे उन्होंने बिना संसाधन के 25 हजार वोट हासिल कर चौका दिया। यही नारा पिछले चुनाव में भी रहा, जिसके चलते नंबर दो पर रहे। इस बार भी सरकार की कमियों के साथ स्थानीय प्रत्याशी के मुद्दे पर जोर दे रहे हैं।
- सात चुनावों में एक बार जीती कांग्रेस
गुढ़ सीट पर कांग्रेस की चुनौती आसान नहीं है। पिछले सात चुनावों में केवल एक बार ही कांग्रेस को कम वोटों के अंतर से जीत मिली है। 1985 के बाद हुए चुनावों में कम्युनिष्ट, बसपा और भाजपा का ही कब्जा रहा आया है। वर्ष 2013 में चतुष्कोणीय मुकाबले में कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी जीते थे। इस बार कांग्रेस को भरोसा है कि कपिध्वज के निजी संपर्कों का भी लाभ मिलेगा।
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त्योंथर : ओबीसी चेहरा और क्षेत्र में सक्रियता को मिला महत्व, 33 साल से कांग्रेस नहीं जीती
जिले की त्योंथर सीट पर कांग्रेस को वर्ष १९९० के बाद से जीत नहीं मिली है। लंबे समय से हार रही सीटों को लेकर तैयार रणनीति और सर्वे के आधार पर एक बार फिर रमाशंकर पटेल को कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित किया है। ये जिले में पार्टी का प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं, साथ ही बीते दस वर्षों से पार्टी के लिए सक्रिय हैं। लगातार कमजोर होती रही पार्टी को मजबूती दी और पिछले चुनाव में पार्टी के दूसरे प्रत्याशियों की तुलना में हार का अंतर सबसे कम था। बसपा एवं अन्य दलों के कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ा है। विंध्य के नेता अजय सिंह राहुल और कमलेश्वर पटेल के साथ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की भी पंसद हैं। लगातार पार्टी ने तीसरी बार इन्हें अवसर दिया है, इस बार इनके लिए चुनौतियां बड़ी हैं।
- पिता की विरासत संभालने राजनीति में आए, अब कांग्रेस में
रमाशंकर के पिता रामलखन सिंह पटेल जनता दल के बड़े नेता थे। त्योंथर से वह लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं। वर्ष १९९३ में जनता दल की ओर से वह विधायक भी चुने गए। इसके बाद जनता दल सेक्युलर में शामिल हुए और चुनाव लड़े। रमाशंकर की राजनीतिक शुरुआत जनता दल सेक्युलर से ही हुई। वह कुछ समय तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद अजय सिंह राहुल ने उन्हें कांग्रेस से जोड़ा। वर्ष २०१३ और २०१८ में वह कांग्रेस की टिकट पर लड़े लेकिन जीत नहीं पाए। यह चुनाव उनके लिए कई चुनौतियां लेकर आया है। हाल ही में सिद्धार्थ तिवारी ने भी त्योंथर से दावा पेश किया था लेकिन टिकट कटने के बाद से उनके तेवर बागी हैं। रमाशंकर के लिए उन्हें साधना बड़ी चुनौती है। सिद्धार्थ ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं।
- पिछले चुनाव में गुटबाजी नहीं संभाल पाए थे
रमाशंकर सिंह पटेल कांग्रेस की टिकट पर त्योंथर से पिछले चुनाव में भी मैदान में थे। शुरुआती दिनों में वह मजबूत स्थिति में थे लेकिन पार्टी के एक प्रमुख धड़े ने उनका विरोध कर दिया था। क्षेत्र के प्रमुख नेता दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार करते रहे लेकिन क्षेत्र में बाहर नहीं निकले। चुनाव के बाद इन्होंने कुछ नेताओं की शिकायत संगठन को भेजी थी लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं हुई। यह चुनौती इस चुनाव में भी इनके सामने है।
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मऊगंज : संघर्षों को फिर मिली तरजीह
क्षेत्र में रहकर जनता के हितों के लिए संघर्ष कर सुखेन्द्र सिंह बन्ना ने राजनीति में अपनी पहचान बनाई। साधारण परिवार से निकले सुखेन्द्र ने क्षेत्र में कई बड़े जनांदोलन किए। मऊगंज को जिला बनाने के लिए वह करीब दस वर्षों से संघर्ष कर रहे थे। इसके लिए मुख्यमंत्री की सभा का विरोध करने का ऐलान कर सुर्खियों में आए थे। मुख्यमंत्री को उनदिनों अपनी सभा जरूर स्थगित करनी पड़ी लेकिन क्षेत्र में पार्टी को जिताने बड़ी कार्ययोजना बनाई और पिछले चुनाव में भाजपा ने सुखेन्द्र सिंह को हराते हुए जीत दर्ज की। मऊगंज को जिला बनाकर भाजपा ने इस मुद्दे को भुनाने का प्रयास किया है लेकिन धन्यवाद सभा में कांग्रेस के लिए जुटे लोगों की संख्या ने इन्हें नई ऊर्जा दी। मऊगंज में कांग्रेस पिछले कई चुनावों से लगातार काफी कमजोर होती जा रही थी। बसपा सहित दूसरे दलों की स्थिति यहां मजबूत रही है, सुखेन्द्र सिंह ने कांग्रेस को फिर से स्थापित करने में भूमिका निभाई। जिसके चलते पार्टी ने लगातार तीसरी बार उन पर भरोसा जताया है। वर्ष 2013 में वह विधायक चुने गए थे।
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युवा कांग्रेस से शुरू की राजनीति
सुखेन्द्र सिंह ने अपनी राजनीतिक शुरुआत युवा कांग्रेस से की थी। इसके बाद हनुमना में जनपद उपाध्यक्ष चुने गए। कांग्रेस में ऐसे मऊगंज सीट से टिकट मिली जब पार्टी तीसरे नंबर के लिए संघर्ष कर रही थी। वर्ष २०१३ में पहली बार पार्टी ने युवा चेहरे के रूप में आजमाया और इन्होंने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया। विधायक चुने जाने के बाद मऊगंज को जिला बनाने और क्षेत्र में बाणसागर बांध का पानी लाए जाने के लिए कई आंदोलन कर हजारों लोगों के साथ गिरफ्तारी दी
- इस बार भी क्षेत्र में कड़े मुकाबले के आसार
पिछला चुनाव हारे सुखेन्द्र सिंह बन्ना के लिए इस बार भी राह अधिक आसान नहीं है। भाजपा ने विधायक पर फिर भरोसा जताया है, वह अपनी पार्टी का ओबीसी चेहरा हैं। नया जिला बनाए जाने का श्रेय भी भाजपा लेना चाह रही है। इसके अलावा अन्य कई दल भी इस बार चुनौतियां बढ़ा रहे हैं। इन्हें अब एंटी इंकंबेंसी और भाजपा की आंतरिक कलह से भी उम्मीदें हैं।
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मनगवां : पार्टी ने दूसरी बार भरोसा जताया
बहुजन समाज पार्टी की नेता रहीं बबिता साकेत को कांग्रेस पार्टी ने लगातार दूसरी बार मौका दिया है। पिछले चुनाव के कुछ दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली थी। इसके बाद पार्टी ने टिकट दिया। इसका खामियाजा उन्हें चुनाव में उठाना पड़ा जिसकी वजह से पार्टी में गुटबाजी के कारण वह चुनाव हार गईं। इसके बाद वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहीं और पिछले चुनाव में जिन मतदाताओं ने समर्थन नहीं किया था उन्हें साधने का भी प्रयास किया है। खासतौर पर सवर्णों को भी जोडऩे का प्रयास किया। इस बार टिकट में चुनौती थी लेकिन सर्वे के आधार पर पार्टी ने बबिता पर भरोसा जताया है। इस सीट पर कांग्रेस को वर्ष 1998 के बाद से जीत हासिल नहीं हुई है।
- महिला और दलित चेहरे का मिला लाभ
मनगवां अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सीट आरक्षित है। इस कारण यहां से किसी दलित प्रत्याशी को ही अवसर मिलना था। बबिता साकेत कांग्रेस में दलित के साथ ही महिला वर्ग का भी प्रमुख चेहरा हैं। इस कारण उन्हें इसका लाभ मिला है। कम उम्र में जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं बबिता लंबे समय तक बसपा में रहीं, साथ ही उमा भारती की पार्टी से भी चुनाव लड़ चुकी हैं। वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय रही हैं इसी के चलते सर्वे में उनका नाम सबसे ऊपर रहा है।
- गुटबाजी इस बार भी कर सकती है परेशान
पिछले चुनाव में गुटबाजी की वजह से हारीं बबिता साकेत के सामने इस वर्ष भी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। यहां से टिकट के लिए पूर्व विधायक शीला त्यागी, प्रीती वर्मा सहित कई अन्य दावेदार रहे हैं। टिकट घोषित होने के बाद से इनके समर्थकों ने अपनी नाराजगी जाहिर करना शुरू कर दिया है, हालांकि उनकी ओर से कोई बयान नहीं आया है। इस कारण एक ओर एंटी इंकंबेंसी का फायदा लेने की तैयारी कर रही कांग्रेस को गुटबाजी दूर करना भी बड़ी चुनौती होगी।
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Published on:
16 Oct 2023 04:10 pm
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