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आरटीआई की जानकारी देने में असहयोग करने वाले अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान

- राज्य सूचना आयुक्त ने कहा, आवेदकों को जहां लगे कि संबंधित विभाग का अधिकारी मनमानी कर रहा है तो सीधे शिकायत भेजें

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रीवा

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Mrigendra Singh

Jul 27, 2020

rewa

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रीवा। सूचना का अधिकार अधिनियम को और सशक्त बनाने के लिए इनदिनों राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह लोगों से सीधे संवाद स्थापित कर रहे हैं। जिसमें आवेदन लगाने के दौरान आने वाली अड़चनों से जुड़े सवालों के जवाब भी दिए जा रहे हैं। वेबीनार के माध्यम से आयोजित इस परिचर्चा में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 18 को लेकर चर्चा हुई। जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से कई एक्टिविष्ट भी जुड़े।

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि कहीं पर यदि नियमों के विपरीत जाकर लोक सूचना अधिकारी या फिर अपीलीय अधिकारी द्वारा असहयोग का प्रयास किया जा रहा है तो सीधे शिकायत आयोग को भेजी जा सकती है। जिससे संबंधित के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है। उन्होंने कई उदाहरण भी बताए कि किस तरह से आवेदक को जानकारी देने में संबंधित विभाग के अधिकारी मनमानी कर रहे थे।

आयोग के संज्ञान में मामला आने के बाद कार्रवाई की गई। सिंह ने कहा कि आवेदन नहीं लेने या फिर जानबूझकर भ्रामक जानकारी देने पर धारा 18 के तहत शिकायत की जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि धारा 18 में आयोग को सिविल जज के समतुल्य शक्तियां प्राप्त होती हैं। हरियाणा के सूचना आयोग का उदाहरण देते हुए कहा कि समन जारी कर पुलिस द्वारा वारंट भी भिजवाया गया था।

इस वेबीनार में प्रमुख रूप से आरटीआई एक्टिविष्ट अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवानन्द द्विवेदी, शिवेंद्र मिश्रा, राकेश शर्मा, अंकुर मिश्रा, अक्षय गोस्वामी, मेघना गतिया, एके सिंह, प्रबल प्रजापति, वीरेंद्र द्विवेदी, आशीष राय, राकेश तिवारी, स्वतंत्र शुक्ला, दीपू सिंह, पुष्पराज तिवारी, गोविंद देशवारी, बलराम तिवारी सहित कई अन्य शामिल हुए।


- विशेषज्ञों ने कहा पुनर्समीक्षा की आवश्यकता
पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णयों की वजह से धारा १८ की शक्तियां कमजोर हुई हैं। कई बार आयोग के आदेश पर संबंधित विभाग कोर्ट चले जाते हैं और जानकारी देने की अनिवार्यता से उन्हें छूट भी मिल जाती है। ऐसी स्थिति में अब पुनर्समीक्षा की आवश्यकता है। उन्होंने सभी आरटीआई एक्टिविष्ट से कहा कि इस संबंध में कोर्ट से अनुरोध करने की आवश्यकता है कि कानून को और मजबूत बनाया जाए। महाराष्ट्र के आरटीआई एक्टिविस्ट भास्कर प्रभु ने कहा कि धारा 18 के तहत सूचना आयुक्त दस्तावेज तलब कर सकते हैं, शपथ पत्र में जानकारी मंगवा सकते हैं। लोक सूचना अधिकारी को वारंट भी जारी कर सकते हैं। गोवा हाईकोर्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि उसमें जानकारी देने से मना कर दिया गया था।



- जुर्माना नहीं भरें तो मंत्रालय को लिखें
पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी के सामने यह बात लाई गई कि राज्य सूचना आयोग द्वारा जो जुर्माने लगाए जाते हैं उन्हें संबंधित विभाग के अधिकारी नहीं भरते। जिससे आरटीआई की गंभीरता कमजोर होने का संदेश जाता है। इस पर गांधी ने कहा कि ऐसी स्थिति में विभाग प्रमुख या फिर मंत्रालय को पत्र आयोग की तरफ से जाना चाहिए, इस पर सख्त कार्रवाई होगी। राज्य सूचना आयुक्त ने बताया कि इस तरह से कई पत्र लिखने के बाद मध्यप्रदेश में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं।