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श्रीनिवास तिवारी के गांव में सन्नाटा, गांव वालों ने कहा- हमारा सबकुछ छिन गया…

श्रीनिवास तिवारी जब मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष बने तो उन्होंने जीवन की उत्कृष्ट पारी की शुरुआत की।

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Silence in the village of Shrinivash tiwari

Silence in the village of Shrinivash tiwari

रीवा. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के निधन का समाचार जैसे ही उनके गृहग्राम तिवनी पहुंचा पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया। परिवार वालों की आंखों से जहां आंसू बह चले वहीं गांव के लोग स्तब्ध थे और उनके मुह से बोल नहीं फूट रहे थे। बड़ी मुश्किल से गांव के बुजुर्गों ने कहा कि हमारा सबकुछ छिन गया। तिवनी गांव का नाम ही तिवारीजी के नाम से पूरे प्रदेश ही नहीं देश में जाना जाता था। उनके नहीं रहने से तिवनी अनाथ हो गया है। गांव का हर व्यक्ति दु:खी था, चाहे वह किसी वर्ग जाति का रहा हो, स्त्री, पुरुष, युवा, बच्चे व बूढ़े सभी। गांव के लोगों से बात की गई तो अधिकांश का कहना था कि उनका सहारा चला गया।


1980 में खुल गया था स्टेट बैंक
बता दें कि श्रीनिवास तिवारी ने तिवनी गांव में उस समय सभी संसाधन उपलब्ध करा दिए थे जब रीवा जिले के गांवों में सुविधाएं पहुंचना स्वप्र जैसे था। सन् 1980 में ही तिवारीजी के प्रयास से तिवनी गांव में स्टेट बैंक खुल गया था, इसके बाद मनगवां बस्ती में बैंक की शाखा खुली। इसके साथ ही हायरसेकेन्ड्री स्कूल, औषधालय सहित अन्य सुविधाएं उन्होंने गांव को दी थी। उनके विकासपरक कार्यों के कारण ही गांव के लोग उनके कायल थे।


गांव में बना दिया था हेलीपैड
श्रीनिवास तिवारी जब मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष बने तो उन्होंने जीवन की उत्कृष्ट पारी की शुरुआत की। अधिकांश समय भोपाल में गुजरता था, लेकिन इसके बाद भी वे गांव को नहीं भूले। उन्होंने अपने विस कार्यकाल के दौरान तिवनी गांव में हेलीपैड बनवा दिया था। जहां आकर हेलीकाप्टर उतरते थे। गांव वालों के लिए यह सुखद था, जिसको याद करके उनकी आंखे नम हैं।


हर होली पर आते थे गांव
सालभर चाहे जहां रहते रहे हों लेकिन होली के दिन घर आना तिवारीजी कभी नहीं भूले। वे प्रत्येक होली को सुबह 7 बजे ही तिवनी आ जाते थे और गांव में रंग-गुलाल और फाग का रंग जमता था। होली वे गांव में परिवार वालों के साथ ही मनाते थे और गांव के हर व्यक्ति से मिलना नहीं भूलते थे।


पूरी रात बैठकर सुनते थे कविताएं
श्रीनिवास तिवारी अपनी पत्नी श्रवण कुमारी की याद में गृहग्राम तिवानी में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन करते थे। जिसमें वे खुद पूरी रात बैठकर कविताएं सुनते थे। इसकी शुरुआत सन् 1985 के फरवरी महीने में हुई थी, तब कवि सम्मेलन में भाग लेने तिवारी के बुलावे पर बाबा नागार्जुन आए थे। तबसे हर साल देश के नामी कवियों का उनके गांव में जमावड़ा होता था।


...और फूट-फूटकर रोने लगा सेवक
मालिक के निधन की खबर तिवनी के घर में उनके सेवक 70 वर्षीय उग्रसेन कुशवाहा को जैसे ही मिली वह फूट-फूटकर रोने लगे। उन्होंने कहा कि अब हम कहां जांएगे, वहीं हमारे माई-बाप थे। उग्रसेन 15 साल की उम्र से श्रीनिवास तिवारी के घर आ गए थे और घर संभालने से लेकर गावं आने पर तिवारी जी का ख्याल रखने का काम उनका ही था। वे कभी अपने घर नहीं गए। उन्होंने बताया कि साहब बहुत अच्छे थे। वे कभी भी गांव आ जाते थे, इसलिए अपने घर नहीं जाता था।

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याददाश्त का कोई सानी नहीं
दादा की याददाश्त का कोई सानी नहीं था। वे एक बार जिससे मिल लेते थे उसे हमेशा याद रखते थे। यहीं नहीं एक बार जिस जगह पर चले जाते थे उसको कभी नहीं भूलते थे। उनका न केवल रीवा जिला बल्कि विंध्य का कोना-कोना जांचा परखा था। जिले के तो अधिकांश गांवों के लोगों को वे नाम से जानते थे, और देखते ही पहचान लेते थे। तपाक से कहते थे आप फलां गांव के हैं न।