7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

रहे सतर्क: बारिश में बढ़ रहे सर्पदंश के मामले,  हर दिन 8 मरीज पहुंच रहे इलाज कराने

98 प्रतिशत की बच रही जान, कोबरा-करैत प्रजाति के सांप डस रहे सागर. बरसात शुरू होते ही स्नैक बाइट के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मेडिकल कॉलेज व जिला अस्पताल में हर दिन औसत 8 मरीज पहुंचते हैं। राहत की बात ये है कि अस्पताल पहुंचने वाले करीब 98 प्रतिशत मरीजों की जान बच […]

2 min read
Google source verification

सागर

image

Nitin Sadaphal

Jul 18, 2024

snake

snake

98 प्रतिशत की बच रही जान, कोबरा-करैत प्रजाति के सांप डस रहे

सागर. बरसात शुरू होते ही स्नैक बाइट के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मेडिकल कॉलेज व जिला अस्पताल में हर दिन औसत 8 मरीज पहुंचते हैं। राहत की बात ये है कि अस्पताल पहुंचने वाले करीब 98 प्रतिशत मरीजों की जान बच जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो जुलाई-अगस्त में सांप के काटने के केस आते हैं। जिसमें जहरीले कोबरा और करैत प्रजाति सांप के डसने के ज्यादा होते हैं। बीएमसी में 5 तो जिला अस्पताल में 3 स्नैक बाइट के केस रोज आ रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले चार माह में यह केस और बढ़ेंगे।

जिला अस्पताल में 228 में से 5 की जान गई

जिला अस्पताल में पिछले सीजन में 228 मरीज पहुंचे थे, जिसमें से 150 केस जुलाई से अक्टूबर के बीच के थे। 228 में से 149 मरीजों को जहरीली और 79 को बिना जहरीली सांप ने काटा था। 35 मरीजों को वेंटीलेटर पर रखा गया। जबकि 5 लोगों की जान चली गई थी।

बीएमसी में 1100 में से 8 मौतें हुईं

बीएमसी में वर्ष करीब 1100 स्नैक बाइट के केस पहुंचे थे, जिसमें 600 मरीज जुलाई से अक्टूबर चार माह के थे। पिछले साल 8 मौतें हुई थीं। इस सीजन 150 से अधिक लोगों का इलाज किया गया। 60 से अधिक मरीजों को वेंटीलेटर पर रखकर जान बचाई गई है।

स्वास्थ्य केंद्रों पर वेंटीलेटर का अभाव

डॉक्टर्स की मानें तो न्यूरोटोक्सिक जहर अंगों को पैरालाइसिस कर देता है। जहर का पहला हमला आंख की पलक पर होता है, उसके बाद सांसें और चंद घंटे में ही जान ले लेता है। जिलेभर के स्वास्थ्य केंद्रों में वेंटीलेटर का अभाव है। मात्र जिला अस्पताल, बीएमसी और शहर के निजी अस्पतालों में इसकी सुविधा है।

ऐसे किया जाता है इलाज

-मरीज के पहुंचने पर सबसे पहले लक्षण देखे जाते हैं ताकि सांप की प्रजाति पता चल सके। जहर न्यूरोटॉक्सिक है या ह्यूमोटॉक्सि।

-जहर की पहचान के लिए 5-10 मिनट का ब्लड टेस्ट (प्रोटीन टेस्ट) किया जाता है। जिससे जहर की प्रकृति पता चलती है।

-जांच के बाद जहर चाहे न्यूरोटॉक्सिक हो या ह्यूमोटॉक्सि उसे एंटी वीनम इंजेक्शन लगाया जाता है। गंभीर स्थिति में पहुंचे मरीज को बिना टेस्ट के भी एएसबी लगाया जाता है।

-इंजेक्शन के बाद जहर यदि न्यूरोटोक्सिक तो उसे पैरालाइसिस संबंधी उपचार होता है। ह्यूमोटॉक्सिक है तो ऐसा उपचार होता है कि जहर शरीर में कहीं ब्लीडिंग न करा पाए।

-एंटी वीनम इंजेक्शन लगाने के बाद 6-8 घंटे ऑबजर्वेशन में रखा जाता है, जब तक की दवा का असर दिखाई न देने लगे।

-ह्यूमोटॉक्सि जहर खून में थक्का बनने से रोकता है जो कि अंग में गैंग्रीन बना सकता है, ऐसे केस को सर्जरी विभाग के सुपुर्द किया जाता है।

सामान्य दिनों में माह में 20-25 केस ही स्नैक बाइट के आते थे, लेकिन अब 100-150 स्नैक बाइट के केस महीने में आ रहे हैं। बारिश के कारण जहरीले कीढ़े बिलों से निकलते हैं और स्नैक बाइट के मामले बढ़ जाते हैं। मरीज समय पर अस्पताल पहुंच जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है।

डॉ. नीरज श्रीवास्तव, कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर बीएमसी।

लोग झाड़ फूंक के चक्कर में समय न गवाएं, अधिकांश मरीजों की जान अस्पताल पहुंचने के बाद बच जाती है। लेकिन कुछ मामले में लोग अंधविश्वास के चलते अपने परिजनों को अपने ही हाथों खो देते हैं।

डॉ. अभिषेक ठाकुर, आरएमओ जिला अस्पताल।