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बारकोड और नंबर से अभिभावक कर सकते हैं जांच, स्कूलों में चलाई जा रही नकली नंबर की पुस्तकें
सागर. निजी स्कूलों की मनमानी और बुक सेलर्स के साथ कमीशनखोरी की वजह से बाजार में फर्जी आईएसबीएन नंबर की किताबों से करोड़ो रुपए का कारोबार हो रहा है। हर वर्ष स्कूलों में नया सत्र शुरू होते ही बाजार डुप्लीकेट किताबें बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है। यह कारोबार नकली आईएसबीएन नंबर की वजह होता है। जबलपुर में हुए खुलासे के बाद सागर संभाग के सभी जिलों में शिक्षा विभाग की टीम भी पुस्तकों पर इस नंबर की जांच में जुट गई है। आप भी इंटरनेट और बारकोड की मदद से इस नंबर की जांच कर सकते हैं। नंबर सही ना होने पर यह नो मैच बताता है।
डॉ. हरिसिंह गौर विवि में डिप्टी लाइब्रेरियन डॉ. संजीव सराफ ने बताया कि यह नंबर एक बार कोड की तरह पुस्तक में लिखा होता है। जिसका पूरा नाम इंटरनेशनल स्टैंड बुक नंबर होता है। इस नंबर किताब की जानकारी, लेखक का नाम, पुस्तक का नाम, मूल्य, प्रकाशक का नाम एवं पृष्ठों की संख्या की जानकारी मिलती है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पुस्तकालय सूचना नेटवर्क (इंफ्लिबनेट सेंटर) केंद्र से यह नंबर जारी किया जाता है। जिसका केंद्र अहमदाबाद में है। इस नंबर की संख्या 13 होती है। पहले वर्ष 2007 तक यह 10 नंबर का होता था।
जांच करके पता करें सही है नंबर
शहर के बाजार में भी फर्जी आईएसबीएन नंबर की किताबें चलाई जा रही हैं। यह किताबें शहर की विशेष स्टेशनरी की दुकानों पर चलाई जाती है। निजी स्कूल की भी फिक्स दुकानों पर किताबें बेची जाती है। आपके घर में जो किताबें पहुंची हैं उसकी जांच आप स्वयं कर सकते हैं। यह 13 अंकों का नंबर हर किताब के पीछे बारकोड के साथ होता है। जिसका बारकोड स्केन किया जा सकता है। यह नंबर गलत होने पर यह नो मैच बताता है। यानी यह किताब उस लेखक और प्रकाशक की नहीं होती है जिसका नाम किताब छपा हुआ है। स्कूल द्वारा नकली किताबों से आपको पढ़ाया जा रहा है।
प्रकाशकों को देनी होती है जानकारी
आईएसबीएन मानक में भाग लेते समय प्रकाशकों को उनके शीर्षकों के बारे में सारी जानकारी देने की आवश्यकता होती है, जिन्हें उन्होंने आईएसबीएन निर्दिष्ट किया है। तीस से अधिक वर्षों तक आईएसबीएन 10 अंक लंबा था। 1 जनवरी, 2007 को आईएसबीएन प्रणाली 13 अंकों के प्रारूप में बदल गई। अब सभी आईएसबीएन 13 अंकों के है।
कुछ जिलों में यह देखने को मिला है कि बुक डीलर ने आईएसबीएन नंबर और क्यूआर कोड की कॉपी करके पुस्तकों का प्रकाशन कर लिया, लेकिन क्यूआर कोड की जांच में नकली पुस्तकों की स्कैनिंग नहीं होती है। इसके अलावा सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को पुस्तकों की जांच के लिए लिंक दी गई है।
मनीष वर्मा, जेडी शिक्षा विभाग
Published on:
13 Jun 2024 11:28 am
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